इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) द्वारा गहरे समुद्र में खनन

इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) द्वारा गहरे समुद्र में खनन

हाल ही में इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) गहरे समुद्र में खनन (Deep Sea Mining) को विनियमित करने के लिए फिर से वार्ता शुरू करेगी ।

ISA, एक स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसे 1982 के ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय’ (UNCLOS) के तहत गठित किया गया है। ISA गहरे समुद्र में खनन के लिए ‘क्षेत्र आवंटित करता है ।

देश अपने स्वयं के समुद्री क्षेत्र और अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (200 समुद्री मील तक) का प्रबंधन करते हैं। इसके विपरीत, खुले समुद्र (High seas) व अंतर्राष्ट्रीय महासागरीय नितल UNCLOS द्वारा अभिशासित ( governed) होते हैं ।

गहरे समुद्र में खनन के तहत समुद्र के नितल से खनिज भंडार और धातुओं को निकालना शामिल है।

इसके अंतर्गत तीन तरीकों से खनिजों को निकाला जाता है:

  • महासागरीय तल में निक्षेपित-समृद्ध पॉलिमेटेलिक नोड्यूल (PMN) को निकालना PMN में निकल, दुर्लभ भू तत्व, कोबाल्ट आदि होते हैं;
  • समुद्र नितल से बड़े पैमाने पर सल्फाइड के भंडारों का खनन किया जाता है; तथा
  • चट्टान से कोबाल्ट की परतों को अलग करना ।

गहरे समुद्री खनन का महत्त्व:

  • PMN से निकाली गई धातुओं का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, स्मार्टफोन, सौर पैनल आदि में किया जा सकता है।
  • आवंटित क्षेत्र में उपलब्ध PMN भंडार के केवल 10% का उपयोग करके, भारत अगले 100 वर्षों तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।

गहरे समुद्री खनन से जुड़ी हुई चिंताएँ:

  • इससे गहरे समुद्र के पारिस्थितिक तंत्र की अपूरणीय एवं अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।
  • समुद्री प्रजातियों पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
  • ईंधन के रिसाव और फैलाव जैसी दुर्घटनाओं का अत्यधिक जोखिम बढ़ सकता है ।
  • UNCLOS, 1994 में प्रभावी हुआ था । यह विश्व के महासागरों और समुद्रों में कानून एवं व्यवस्था की एक वृहद प्रणाली स्थापित करता है। साथ ही, महासागरों और उनके संसाधनों के सभी उपयोगों को शासित करने वाले नियमों को स्थापित करता है ।

स्रोत – द हिन्दू

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