IPCC की छठी आकलन रिपोर्ट (Assessment Report) का दूसरा भाग जारी
हाल ही में IPCC ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (Assessment Report) का दूसरा भाग जारी किया। इस रिपोर्ट का शीर्षक है- “जलवायु परिवर्तन 2022: प्रभाव, अनुकूलन और सुभेद्यता’ (Climate Change 2022: Impacts, Adaptation and Vulnerability) है । यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Inter-Governmental Panel on Climate Change: IPCC) द्वारा जारी की गई है।
इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन करने संबंधी प्रकृति और मानव समाज की सुभेद्यताओं, क्षमताओं और सीमाओं की समीक्षा की गई है।
IPCC, संयुक्त राष्ट्र संघ का एक निकाय है। इसकी स्थापना वर्ष 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (W.M.O.) द्वारा की गयी थी।
इस रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षः
- जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव पहले के अनुमानों की तुलना में कहीं अधिक व्यापक, नियमित और बहुत अधिक विनाशकारी हैं।
- भारत सहित दक्षिण एशिया , सबसे सुभेद्द क्षेत्रो में शामिल है। साथ ही, वर्ष 2050 तक गंगा पारितंत्र बेसिन में गंभीर जल संकट की संभावना व्यक्त की गई है।
- जलवायु संकट के कारण पहले ही कुछ अपरिवर्तनीय बदलाव हो चुके हैं।
इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- स्थलों और महासागरों में जीवों की बड़े पैमाने पर मृत्यु की घटनाएं,
- मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण किसी प्रजाति के विलोपन (extinction) का पहला मामला, तथा अत्यधिक गर्मी के कारण मृत्यु और रोगों का बढ़ता प्रकोप।
- विश्व की कम से कम आधी आबादी जलवायु संकट के प्रति सुभेद्य क्षेत्रों में रहती है।
- जलवायु संकट ने लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है
- वैश्विक स्तर पर डायरिया जैसे रोग को नियंत्रित कर लिया गया था। हालांकि, उच्चतर तापमान, अत्यधिक
- वर्षा और बाढ़ की बढ़ती घटनाओं ने डायरिया जैसी बीमारियों के प्रकोप को फिर से बढ़ा दिया है।
- इस रिपोर्ट में पारितंत्र-आधारित अनुकूलन (ecosystem-based adaptation) और प्रकृति-आधारित दृष्टिकोण (Nature-based approaches) को अपनाने का सुझाव दिया गया है।
संस्तुति
हरित अवसंरचना जैसे विकल्पों को अपनाना, तथा अनुकूलन और शमन (adaptation and mitigation) संबंधी प्रयासों में तालमेल स्थापित करना।
स्रोत –द हिंदू