अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) रिपोर्ट

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) रिपोर्ट

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, वर्ष 2035 तक देखभाल सेवाओं में निवेश से महिलाओं के लिए 23.4 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं ।

यह रिपोर्ट “केयर एट वर्कः इन्वेस्टिग इन केयर लीव एंड सर्विसेज फॉर ए मोर जेंडर इक्वल वर्ल्ड ऑफ वर्क” शीर्षक से प्रकाशित की गई है।

यह रिपोर्ट देखभाल नीतियों के संबंध में राष्ट्रीय कानूनों और प्रथाओं का वैश्विक विश्लेषण प्रदान करती है।

देखभाल नीतियों में शामिल हैं मातृत्व सुरक्षा; पितृत्व, अभिभावकीय और अन्य देखभाल से संबंधित अवकाश नीतियां; बाल – देखभाल; और दीर्घकालिक देखभाल सेवाएं।

देखभाल नीतियों से जुड़े मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

  • सार्वभौमिक बाल देखभाल और दीर्घकालिक देखभाल सेवाओं में निवेश करने से वर्ष 2035 तक 9 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
  • इनमें से 78% रोजगार महिलाओं के हिस्से में आएंगे।

वर्ष 2035 तक रोजगार सृजन की संभावना वाले क्षेत्र हैं:

  • बाल देखभाल में 96 करोड़ प्रत्यक्ष नौकरियाँ, दीर्घकालिक देखभाल में 6 करोड़ प्रत्यक्ष नौकरियाँ और गैर-देखभाल क्षेत्रों में 6.7 करोड़ अप्रत्यक्ष नौकरियाँ ।
  • देखमाल सेवाओं और नीतियों में लगातार और स्थायी अंतराल बना हुआ है। इसने पारिवारिक जिम्मेदारियों वाले लाखों श्रमिकों को पर्याप्त सुरक्षा और समर्थन से वंचित रखा है।
  • गरिमा पूर्ण और स्वतंत्र जीवन से युक्त स्वस्थ वृद्धावस्था के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए दीर्घकालिक देखभाल सेवाएं आवश्यक हैं।
  • हालांकि, मातृत्व अवकाश एक सार्वभौमिक मानव और श्रम अधिकार है, लेकिन अभी भी इसे पूरी तरह से अमल में नहीं लाया जा रहा है।
  • विश्व के 64 देशों में, मातृत्व अवकाश की अवधि अभी भी ILO के 14 सप्ताह के अनिवार्य मानकों से नीचे है।
  • पितृत्व अवकाश पुरुषों के देखभाल अधिकारों और जिम्मेदारियों को सक्षम करने की कुंजी है। विडम्बना यह है कि लगभग दो-तिहाई सक्षम पिता (1.26 अरब पुरुष) ऐसे देशों में रहते हैं जिनके पास पितृत्व अवकाश का कोई अधिकार नहीं है।

इस रिपोर्ट के मुख्य सुझावः

  • इसके बारे में पर्याप्त ज्ञान, डेटा और जागरूकता का सृजन किया जाना चाहिए।
  • देखभाल नीतियों और सेवाओं को डिजाइन और उन्हें लागू किया जाये।
  • देखभाल नीतियां और सेवाएं कम लागत वाली होने चाहिए। प्रतिनिधित्व और सामाजिक संवाद को मजबूत करने की जरूरत है।

स्रोत द हिन्दू

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