INS सिंधुध्वज
हाल ही में भारतीय नौसेना ने 35 साल तक सेवा में रहने के बाद ‘किलो क्लास पनडुब्बी’ (Kilo class submarine) INS सिंधुध्वज को विशाखापत्तनम में सेवा से मुक्त कर दिया।
वर्तमान में नौसेना के साथ सेवा में शामिल केवल 15 पारंपरिक पनडुब्बियाँ हैं।
INS सिंधुध्वज की मुख्य विशेषताएँ:
- INS सिंधुध्वज को जून 1987 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
- यह 10 ‘किलो क्लास पनडुब्बियों’ में से एक थी, इसको भारत ने वर्ष 1986 और 2000 के समय रूस (पूर्व सोवियत संघ सहित) से खरीदा था।
इसके द्वारा किये गए सफल अभियान
- इसके द्वारा ही स्वदेशी सोनार USHUS, स्वदेशी उपग्रह संचार प्रणाली रुक्मणी और MSS, जड़त्वीय नेविगेशन प्रणाली और स्वदेशी टॉरपीडो फायर कंट्रोल सिस्टम का परिचालन सफल हुआ था।
- सिंधुध्वज ने डीप सबमर्जेंस रेस्क्यू वेसल और कार्मिक स्थानांतरण के कार्य में भी सफलता अर्जित की थी ।
- यह पहली पनडुब्बी थी जिसे प्रधानमंत्री द्वारा नवाचार के लिये रोलिंग ट्रॉफी से सम्मानित किया गया था।
वर्तमान परिदृश्य:
- भारतीय नौसेना के बेड़े में वर्तमान में 7 रूसी ‘किलो क्लास पनडुब्बियाँ’, 4 जर्मन HDW पनडुब्बियाँ, 4 ‘फ्राँसीसी स्कॉर्पीन पनडुब्बियाँ’ और स्वदेशी परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी INS अरिहंत सम्मिलित हैं।
- इसके साथ ही स्कॉर्पीन श्रेणी की अंतिम दो पनडुब्बियाँ परीक्षण और आउटफिटिंग के विभिन्न चरणों में हैं।
प्रोजेक्ट-75I के तहत 6 उन्नत पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है । प्रोजेक्ट-75I में अत्याधुनिक एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम से लैस पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण की परिकल्पना की गई है, जिसकी अनुमानित लागत 43,000 करोड़ रुपए है।
स्रोत – द हिंदू