पनडुब्बी तकनीक जिसे भारत प्राप्त करना चाहता है

पनडुब्बी तकनीक जिसे भारत प्राप्त करना चाहता है

फ्रांस के नेवल (नौसेना) ग्रुप ने भारतीय नौसेना की P-75 इंडिया (0-75I) परियोजना के लिए बोली को अस्वीकार कर दिया है। इस समूह के अनुसार यह परियोजना वायु-स्वतंत्र प्रणोदन (Air-Independent Propulsion: AIP) प्रणाली का उपयोग नहीं करती है।

AIP पारंपरिक यानी गैर-परमाणु पनडुब्बियों में प्रयुक्त होने वाली एक तकनीक है।

AIP तकनीक से युक्त एक पारंपरिक पनडुब्बी सामान्य डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की तुलना में जल के भीतर अधिक लंबी अवधि (लगभग 15 दिन) तक रह सकती है।

विदित हो कि P-75I, 30 वर्षीय पनडुब्बी निर्माण योजना का हिस्सा है। यह योजना वर्ष 2030 में समाप्त होगी।

इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 24 पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण करना है (अब इसे घटाकर 18 कर दिया गया है)।

30 वर्षीय इस परियोजना के पूरा होने पर भारत के पास निम्नलिखित पनडुब्बियां होने का अनुमान है:

  • 6 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां,
  • 6 AIP-संचालित पनडुब्बियां, और
  • परमाणु हमले वाली छह पनडुब्बियां (अभी बनाई जानी है)।

प्रोजेक्ट-75 में स्कॉर्पीन (डीजल-इलेक्ट्रिक) डिजाइन की छह पनडुब्बियों का निर्माण शामिल है। इनमें से चार; कलवरी, खंडेरी, करंज और वेला को पहले ही नौसेना को सौंपा जा चुका है और इनका जलावतरण भी किया जा चुका है।

अन्य दो पनडुब्बियां हैं: INS वागीर और INS वागशीर।

स्कॉर्पीन पनडुब्बियां कई तरह के मिशनों को अंजाम दे सकती हैं।  इनमें शामिल हैं:  समुद्री सतह-रोधी  युद्ध, पनडुब्बी-रोधी युद्ध, खुफिया जानकारी एकत्र करना, माइन बिछाना, क्षेत्र की निगरानी करना आदि।

स्रोत द हिन्दू

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