भारतीय तट रेखाओं का बढ़ता अपरदन
हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) ने अपनी एक रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा को सूचित किया था कि, भारत की मुख्य भूमि की कुल 6,907.18 किलोमीटर लंबी तटरेखा का लगभग 34% हिस्सा अलग-अलग स्तरों के अपरदन का सामना कर रही है।
इसी अध्ययन के आधार पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने बताया की इन सब में बंगाल तट सबसे अधिक अपरदन का सामना कर रहा है ।
तटरेखा को समुद्री तट या किनारे के जल की निर्दिष्ट सतह से मिलन बिंदु के रूप में परिभाषित किया जाता है। उदाहरण के लिए, उच्च-जल वाली तटरेखा समुद्र किनारे या समुद्र तट के साथ औसत उच्च जल की सतह से मिलन बिंदु होगी।
अपरदन के निम्नलिखित कारण हैं:
- प्राकृतिक घटना के कारण अपरदन : इसमें महासागरीय परिघटना का हाइडोडायनेमिक (जलगतिकीय) प्रभाव शामिल है। जैसे की लहरें, ज्वार, समद्री धाराएं, तलछट की कमी आदि। इन कारणों से तलछट का यहां-वहां जमाव होता है और तटों के आकार में परिवर्तन होता है।
- मानवीय हस्तक्षेप के कारण अपरदन : तटीय क्षेत्रों में कारखानों, घरों आदि जैसे अनियोजित निर्माण और पर्यटन के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों से तटीय क्षेत्रों का अतिक्रमण किया जाता है।
अपरदन रोकने के लिए किये गए उपाय:
- राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) ने तटीय सुभेद्यता सूचकांक (Coastal Vulnerability Index)का एक एटलस तैयार कर इसे प्रकाशित किया है।
- “भारतीय तट से सटी तटरेखा में परिवर्तन की राष्ट्रीय आकलन रिपोर्ट” वर्ष 2018 में जारी की गई थी। यह तटरेखा संरक्षण उपायों के मूल्यांकन और कार्यान्वयन पर लक्षित थी।
- 15वें वित्त आयोग ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष के तहत अपरदन को रोकने के लिए उपशमन उपायों हेतु विशेष सिफारिशें की थीं।
- प्रतिशत के आधार पर पश्चिम बंगाल को वर्ष 1990 से 2018 की अवधि में अपने लगभग 60.5% समुद्री तट के अपरदन का सामना करना पड़ा है। इसके बाद केरल, तमिलनाडु और गुजरात का स्थान है।
स्रोत –द हिन्दू