‘भारत–यूरोपीय संघ’ (EU) व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC)
हाल ही में भारत एवं यूरोपीय आयोग “भारत-यूरोपीय संघ”, व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) गठित करने पर सहमत हुए हैं।
व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) दोनों पक्षों के बीच एक रणनीतिक समन्वय तंत्र के रूप में कार्य करेगी। यह परिषद दोनों भागीदारों को व्यापार, विश्वसनीय प्रौद्योगिकी और सुरक्षा के मामले में सामने आई चुनौतियों से निपटने में मदद करेगी।
साथ ही, यूरोपीय संघ और भारत के बीच इन क्षेत्रों में सहयोग को और बेहतर करेगी। भारत ने पहली बार किसी पक्ष के साथ इस तरह का समझौता किया है। वहीं यह यूरोपीय संघ के लिए ऐसा दूसरा समझौता है। EU, वर्ष 2021 में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ US-EU TTC समझौता कर चुका है।
इस अनिश्चित वैश्विक रणनीतिक परिवेश में EU के साथ भारत की ऐसी साझेदारी भारत के बढ़ते राजनीतिक महत्व को दर्शाती है।
व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) कैसे कार्य करेगी?
- यह भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को राजनीतिक स्तर का पर्यवेक्षण प्रदान करेगी।
- यह आर्थिक मतभेदों को दूर कर एक प्रारंभिक एवं व्यापक भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और निवेश समझौते हेतु मार्ग प्रशस्त करेगी।
- वर्तमान चुनौतियों और भू-राजनीतिक परिस्थितियों से निपटने के लिए भारत-यूरोपीय संघ को राजनीतिक रूप से सहयोगी बनाएगी। इसका एक उदाहरण- हिंद-प्रशांत क्षेत्र है।
- G20, विश्व व्यापार संगठन आदि जैसे बहुपक्षीय मंचों पर आपसी हितों के मुद्दों पर बेहतर समन्वय लाएगी।
भारत–यूरोपीय संघ संबंध
- दोनों पक्षों के बीच संबंधों की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी। भारत, यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक है।
- एक संगठन के रूप में EU, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- वर्ष 2004 में द्विपक्षीय संबंधों को ‘रणनीतिक भागीदारी तक बढ़ा दिया गया था।
- वर्ष 2020 में “इंडिया-EU स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिपः ए रोडमैप टू 2025” को अपनाया गया था।
वर्तमान समय में भारत–यूरोपीय संघ संबंधों को दिशा देने वाले कारक –
- बदलते भू-राजनीतिक घटनाक्रम जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन का उदय,अफगानिस्तान से अमेरिका की निकासी आदि ।
- हिंद महासागर में भारत और EUके हित एक समान हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हिंद महासागर विश्व व्यापार और ऊर्जा परिवहन के लिए एक मुख्य मार्ग है।
- कोविड-19 के बाद एक नयी विश्व व्यवस्था उभरकर सामने आ रही है। यूरोपीय संघ उस वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से दूर जाना चाहता है, जो चीन पर अत्यधिक निर्भर है। ऐसे में भारत इसके सबसे स्वाभाविक सहयोगी के रूप में उभर सकता है।
स्रोत –द हिन्दू