मछलियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन
हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण मछलियां अपने पर्यावास व प्रवास मार्ग से कहीं और गमन कर जाएंगी ।
हाल ही के एक अध्ययन में मछलियों के सीमापारीय भंडारों (झुंड या आबादी) पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन किया गया है। यह अध्ययन अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (Exclusive Economic Zones: EEZs) के संदर्भ में किया गया है।
मत्स्यन भंडारों के स्थानांतरण से जुड़ी चिंताएं:
- यह मछली पकड़ने की क्षमता, मत्स्य उत्पादन, आश्रित आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करेगा।
- सतत विकास लक्ष्य 14 – जलीय सतह के नीचे जीवन प्रभावित हो सकता है।
- यह वर्तमान शासन तंत्र और मत्स्य प्रबंधन ढांचे की प्रभावशीलता के समक्ष चुनौती पैदा करेगा।
- इससे समुदायों की आजीविका की हानि होगी।
मत्स्यन पर अन्य जलवायु परिवर्तन प्रभावः
मछलियों की विविधता व वितरण पर प्रभाव; जल में घुलित ऑक्सीजन की कमी; मछली उत्पादन में गिरावट इत्यादि।
आवश्यक उपायः
- जलवायु परिवर्तन एजेंडे के SDGs के साथ राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए राष्ट्रीय कानूनी और नीति-निर्माण ढांचे को सक्षम करना महत्वपूर्ण है।
- जलवायु संबंधी नीतियों और कार्यवाहियों के सहयोग एवं समन्वय के साथ सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से लचीलापन बनाना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय मात्स्यिकी समझौतों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
साझे भंडार
- साझे भंडार की अवधारणा, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) की अभिपुष्टि और तटीय राज्यों द्वारा EEZs के दावे के बाद विकसित की गई थी।
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, साझे भंडार को चार गैर-अनन्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: – ट्रांसबाउंडरी स्टॉक, जो पड़ोसी EEZs को पार करते हैं
- स्ट्रैडलिंग स्टॉक, जो पड़ोस के EEZs के अतिरिक्त, निकटवर्ती खुले समुद्रों (अर्थात, राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्रसे बाहर के क्षेत्रों) में भी गमन करते हैं;
- हाइली माइग्रेटरी स्टॉक, जो खुले समुद्र और EEZs दोनों सहित विशाल महासागरीय क्षेत्रों में प्रवास करते हैं; तथा डिस्क्रीट भंडार, जो केवल खुले समुद्रों में पाए जाते हैं।
स्रोत – द हिन्दू