ILO की लर्निंग गाइड में LGBTIQ+वर्कर्स के प्रति भेदभाव समाप्त करने हेतु नीतियां
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की लर्निंग गाइड में LGBTIQ+ वर्कर्स के प्रति भेदभाव समाप्त करने और उनके लिए विशेष नीतियां बनाने के लिए कहा गया है ।
ILOने अपनी रिपोर्ट में LGBTIQ+ वर्कर्स द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव और इसकी आर्थिक लागत पर प्रकाश डाला है।
ILO ने इस समुदाय द्वारा कार्यस्थल पर उत्पीड़न और अपवर्जन को समाप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने तथा श्रम कानूनों की समीक्षा करने का आह्वान किया है।
LGBTIQ+ लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स और क्वीर का संक्षिप्त रूप है।
लर्निंग गाइड के मुख्य निष्कर्ष:
- विश्व भर में, LGBTIQ+ व्यक्तियों को कार्यस्थल पर उत्पीड़न, हिंसा, भेदभाव और असमान व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
- वर्ष 2021 तक, केवल 29 देशों ने कानूनी रूप से विवाह समानता (समलैंगिक विवाह) को मान्यता दी है। वहीं 34 देशों ने समलैंगिक सहजीवन को मान्यता प्रदान की है।
- वर्ष 2020 तक, संयुक्त राष्ट्र संघ के 81 सदस्य देशों ने नियोजन में लैंगिक रुझान के आधार पर भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की है। हालांकि, LGBTIQ+ अब भी सामाजिक सुरक्षा की कमी, सामाजिक बहिष्कार आदि का सामना कर रहे हैं।
दिए गए प्रमुख सुझाव:
- MLGBTIQ+ के समावेशन को मापनाः इससे लागू किए जा रहे उपायों और नीतियों के प्रभावी होने के बारे में पता लगाया जा सकेगा।
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और विश्व बैंक द्वारा LGBTIO+ समावेशन सूचकांक जारी किया जाता है।
- यह सूचकांक निम्नलिखित पांच आयामों पर आधारित है: – शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यक्तिगत सुरक्षा और हिंसा, . आर्थिक कल्याण, तथा राजनीतिक और नागरिक भागीदारी।
निम्नलिखित स्तरों पर त्रिपक्षीय कार्रवाई करने की जरूरत है:
- सरकार कार्य की भेदभाव रहित प्रकृति सुनिश्चित करने के लिए कानूनी, नीतिगत और सामाजिक रूपरेखा प्रदान कर सकती है।
- नियोक्ता सुरक्षित और अनुकूल परिवेश वाला कार्यस्थल सुनिश्चित कर सकते हैं।
- कामगारों के संगठन LGBTIQ+ समुदाय के कामगारों को संगठित होने में मदद कर सकते हैं। साथ ही, उन्हें संघ बनाने की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करने और सामूहिक सौदेबाजी में शामिल होने में मदद कर सकते हैं।
भारत में LGBTQIA+ अधिकारों का विकास–
- नाज फाउंडेशन बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली मामलाः उच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377, संविधान के अनुच्छेद 14,15,19 और 21 द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों का उल्लंघन करती है।
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामलाः उच्चतम न्यायालय ने ट्रांसजेंडर समुदाय को ‘थर्ड जेंडर’ का दर्जा दिया।
- नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ मामलाः उच्चतम न्यायालय ने धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कल्याण का प्रावधान करता है।
स्रोत –द हिन्दू