हिजाब धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं
हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि हिजाब धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
हाई कोर्ट ने यह निर्णय उस याचिका पर दिया है जिसमें स्कूल और कॉलेज में कक्षाओं के अंदर यूनिफॉर्म के साथ हिजाब या सिर पर स्कार्फ पहनने के अधिकार की मांग की गयी थी।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने क्या कहा?
- मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिज़ाब (हेड स्काफी पहनना, इस्लाम में अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा नहीं है। इसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण प्राप्त नहीं है।
- स्कूल यूनिफॉर्म का निर्धारण, अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। यह अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार का भी उल्लंघन नहीं करता है।
- शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध, एक ऐसा युक्तियुक्त प्रतिबंध (reasonable restriction) है, जिसकी अनुमति संविधान में भी है ।
अनिवार्य धार्मिक प्रथा परीक्षण (essential religious practice test) क्या हैं ?
- यह सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 1954 के “शिरूर मठ” मामले में प्रस्तुत किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत केवल ऐसी धार्मिक प्रथाओं की रक्षा के लिए विकसित किया है, जो धर्म के अनुसार आचरण के लिए आवश्यक और धर्म का अभिन्न हिस्सा हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि “धर्म” शब्द, एक धर्म के लिए “अभिन्न” (integral) सभी रिवाजों और प्रथाओं को शामिल करेगा।
- कौन-सी प्रथाएं अनिवार्य हैं और कौन-सी गैर-अनिवार्य, इसे निर्धारित करने की जिम्मेदारी कोर्ट ने अपने ऊपर ले ली।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने अलग-अलग फैसलों में अनिवार्य और गैर-अनिवार्य प्रथाओं में अंतर करने का प्रयास किया है।
स्रोत – द हिन्दू