यमुना में बढ़ता अमोनिया का स्तर
हाल ही के कुछ दिनों में यमुना नदी में ‘अमोनिया’ का स्तर अधिक हो जाने से दिल्ली के कुछ हिस्सों में पानी की आपूर्ति बाधित एक बार फिर से बाधित कर दिया गया है ।
वैज्ञानिकों के अनुसार 16 अप्रैल की तारीख को नदी में ‘अमोनिया’ की सांद्रता 7.4 पीपीएम (Parts Per Million) थी, जो दिल्ली जल बोर्ड के जल उपचार संयंत्र (water treatment plants – WTPs) द्वारा संसाधित किए जा सकने वाले लगभग ‘1 PPM’ के स्तर का 7 गुना अधिक थी।
क्या है जल में अमोनिया की स्वीकार्य सीमा ?
पीने के पानी में अमोनिया की अधिकतम स्वीकार्य सीमा ,भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) के अनुसार, ‘0.5 पार्ट पर मिलियन’ (Parts Per Million-PPM) है।
अमोनिया:
- आमोनिया का उपयोग उर्वरक, प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर, रंजक और अन्य उत्पादों के उत्पादन में औद्योगिक रसायन के रूप में किया जाता है।
- अमोनिया एक रंगहीन गैस है जो हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन से मिलकर बनती है। इसकी द्रव अवस्था को अमोनियम हाइड्रॉक्साइड कहा जाता है।
- यह तीक्ष्ण गंध-युक्त एक अकार्बनिक यौगिक है। यह हवा से काफी हल्की होती है।
- अमोनिया, प्राकृतिक रूप से वातावरण में जैविक अपशिष्ट पदार्थ के विघटन से निर्मित होती है।
संदूषण (Contamination):
- आमोनिया औद्योगिक अपशिष्टों अथवा सीवेज संदूषण के द्वारा मृदा एवं सतही जल स्रोतों में पहुँच जाती है। जल में इसकी मात्रा 1 ppm से अधिक होने पर, जल मछलियों के लिए विषाक्त हो जाता है।
- मनुष्यों द्वारा 1 ppm या उससे अधिक के अमोनिया के स्तर वाले पानी को लंबे समय तक पीने से आंतरिक अंगों को नुकसान हो सकता है।
यमुना में अमोनिया की मौजूदगी के कारण:
यमुना नदी में अमोनिया की बढ़ती मात्रा का कारण , हरियाणा के पानीपत और सोनीपत जिलों में डाई यूनिट, डिस्टिलरी से निकले अपशिष्ट व संदूषित पदार्थों तथा नदी के इस भाग में कुछ बिना सीवर वाली कालोनियों द्वारा अशोधित गंदे पानी का प्रवाह है।
संदूषण से बचने के उपाय:
- यमुना नदी में हानिकारक अपशिष्टों को छोड़ने के खिलाफ जारी किये गए दिशानिर्देशों का सख्ती से कार्यान्वयन किया जाना चाहिए ।
- फैक्ट्रियों, नालों के अशोधित गंदे पानी के यमुना में प्रवाह पर रोक सुनिश्चित की जानी चाहिए।
- सतत न्यूनतम प्रवाह, जिसे पारिस्थितिक प्रवाह भी कहा जाता है, को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। पानी की इस न्यूनतम मात्रा को नदी के सम्पूर्ण विस्तार में जलीय तथा ज्वारनदमुखीय परितंत्रो एवं मानव-आजीविका के वहन हेतु सदैव प्रवाहित होना चाहिए।
स्रोत – द हिंदू