क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) को सूचीबद्ध करने हेतु दिशा–निर्देश जारी
हाल ही में वित्त मंत्रालय ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) को सूचीबद्ध (लिस्टिग) करने के लिए प्रारूप दिशा-निर्देश जारी किए हैं ।
इन प्रारूप दिशा-निर्देशों के अनुसार, RRBs स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने और धन जुटाने के लिए पात्र होंगे, यदि वे निम्नलिखित शर्तों को पूरा करते हैं:
- जिनकी नेटवर्थ पिछले तीन वर्षों में कम से कम 300 करोड़ रुपये हो;
- जिनकी पिछले प्रत्येक तीन वर्षों में 9% की पूंजी पर्याप्तता रही हो; तथा
- जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में से न्यूनतम तीन वर्षों में कम-से-कम 15 करोड़ रुपये का परिचालन दर्ज किया हो।
सरकार ने वित्तीय सेवा विभाग को एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करने के लिए कहा था। इसका उद्देश्य समयबद्ध तरीके से RRBs को और मजबूत करना तथा महामारी के बाद के आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाना था।
RRBs के बारे में:
- RRBs की स्थापना 2 अक्टूबर, 1975 को हुई थी। इसके लिए वर्ष 1975 में एक अध्यादेश जारी किया गया था। इसके अगले वर्ष क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB) अधिनियम, 1976 के तहत इन्हें और मजबूत किया गया था।
- इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, खेतिहर मजदूरों और कारीगरों को ऋण एवं अन्य सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
- वर्तमान में, RRBs में केंद्र की 50% हिस्सेदारी है। शेष 35% और 15% हिस्सेदारी क्रमशः संबंधित प्रायोजक बैंकों और राज्य सरकारों के पास हैं।
- RRB अधिनियम में वर्ष 2015 में संशोधन किया गया था। इस संशोधन के तहत RRBs को केंद्र, राज्यों और प्रायोजक बैंकों के अलावा अन्य स्रोतों से पूंजी जुटाने की अनुमति दी गई थी।
- RRBs के लिए 75% ऋण प्रदायगी प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रक को ऋण (priority sectorlending: PSL) हेतु निर्धारित की गई है।
- कृषि; सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME); शिक्षा; आवास आदि क्षेत्र PSL के अंतर्गत आते हैं।
RRBs के समक्ष चुनौतियां–
- जमा (Deposit) जुटाने में कठिनाइयां।
- शाखा विस्तार में, जल्दबाजी व समन्वय का अभाव।
- उधार देने की प्रक्रिया में धीमी प्रगति।
- प्रक्रियाओं का बोझिल होना।
- कर्मचारियों का शहरोन्मुख होना।
स्रोत – द हिन्दू