ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल की ‘ग्लोबल विंड रिपोर्ट’ 2022
हाल ही में ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल की “ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2022” जारी की गई है । इस रिपोर्ट में तेजी से आपस में जुड़ रहे विश्व में पवन ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाने के समक्ष आ रही सभी चुनौतियों का परीक्षण किया गया है।
इन चुनौतियों में आपूर्ति श्रृंखला संबंधी भू-राजनीति, सामाजिक प्रभाव, दुष्प्रचार, साइबर सुरक्षा और क्रिप्टोकरेंसी आदि शामिल हैं।
ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल, पवन ऊर्जा उद्योग के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- वर्ष 2021 में, वैश्विक स्तर पर ग्लोबल विंड इंडस्ट्री ने 94 गीगावाट (GW) की पवन ऊर्जा क्षमता को जोड़ा था। यह वर्ष 2020 की रिकॉर्ड वृद्धि से केवल 8% कम थी।
- तटवर्ती पवन ऊर्जा बाजार द्वारा वैश्विक स्तर पर 50 की क्षमता को जोड़ा गया है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 18% कम है। इसका कारण चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विश्व के दो सबसे बड़े पवन ऊर्जा बाजारों में गिरावट थी।
- ग्लोबल वार्मिंग को 5°C तक सीमित रखने के लिए वर्ष 2030 तक वार्षिक पवन ऊर्जा संस्थापन को चार गुना बढ़ाने की आवश्यकता है।
भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र के बारे में
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2030 तक 140 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता होगी। अपतटीय पवन ऊर्जा से 30 गीगावाट का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- भारत में जनवरी 2022 तक पवन ऊर्जा की संस्थापित क्षमता 1 गीगावाट थी। इस मामले में भारत वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है। वर्तमान में भारत में अक्षय ऊर्जा उत्पादन में पवन ऊर्जा का योगदान 10.2 प्रतिशत है।
- विश्व बैंक ने भारत के तटीय क्षेत्र में 174 GW स्थिर और तैरती अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता का मानचित्रण किया है। सर्वाधिक पवन ऊर्जा संसाधन तमिलनाडु के अपतटीय क्षेत्र में मौजूद हैं। गुजरात के अपतटीय क्षेत्र में बेहतर पवन ऊर्जा संसाधन उपलब्ध है।
- मिश्रित वित्त और ग्रीन/मसाला बॉण्ड जैसी अभिनव वित्तपोषण व्यवस्था अपनाई गई है। इससे अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्त की उपलब्धता को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
स्रोत –द हिन्दू