उच्चतम न्यायालय द्वारा चुनाव से पहले की जाने वाली मुफ्त उपहारों की घोषणाओं पर रोक
उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव से पहले की जाने वाली मुफ्त उपहारों की घोषणाओं से संबंधित याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया है ।
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय (SC) ने निर्वाचन आयोग (EC) को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर नोटिस जारी किया है।
यह याचिका, राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक कोष से अतार्किक मुफ्त सेवाएं/वस्तुएं देने का वादा करने या वितरित करने से रोकने हेतु EC द्वारा दिशा-निर्देश जारी करने से संबंधित है।
मुफ्त उपहारों की घोषणाओं से संबंधित चिंताएं
- ऐसी घोषणाएं मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करती हैं।
- यह प्रवृत्ति सभी उम्मीदवारों के लिए चुनावों में भाग लेने के समान अवसर को बाधित करती है। साथ ही, यह चुनाव प्रक्रिया कीपवित्रता को भी दूषित करती है।
- यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत को कमजोर करती है।
- इससे राज्यों पर अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ता है।
- उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में स्पष्ट किया था कि चुनावी घोषणा पत्र में किये गए वादों को “भ्रष्ट आचरण के रूप में नहीं माना जा सकता है।
- जब सत्ताधारी दल, राज्य विधानसभा में विनियोग अधिनियम पारित करके उक्त उद्देश्य के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग करता है, तो ऐसे मुफ्त वितरण को रोका नहीं जा सकता है।
- मुफ्त उपहारों का वितरण सभी लोगों को प्रभावित करता है। प्रस्तुत याचिका में निर्वाचन आयोग से दिशा-निर्देश तैयार करने की मांग की गई है। साथ ही, इसमें ‘राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने के लिए इस संबंध में विधायिका द्वारा एक अलग कानून पारित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।
- निर्वाचन आयोग ने बालाजी मामले में निर्देशों को पहले ही लागू कर दिया है। ऐसा आदर्श आचार संहिता के भाग VII में चुनावी घोषणापत्र को नियंत्रित करने वाले दिशा-निर्देशों को शामिल करके किया गया है। इस संहिता का अनुपालन बाध्यकारी है।
स्रोत -द हिन्दू