आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौता

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आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौता

हाल ही में वाणिज्य मंत्री ने तीसरे पक्षों द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिए आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते (Free-Trade Agreement: FTA) पर पुनः विमर्श की आवश्यकता को रेखांकित किया है ।

आसियान-भारत वस्तु व्यापार समझौते (ASEAN-India Trade In Goods Agreement) पर वर्ष 2009 में हस्ताक्षर किए गए थे। यह समझौता वर्ष 2010 में लागू हुआ था।

आसियान-भारत सेवा व्यापार समझौते (ASEAN-India Trade In Services Agreement) पर वर्ष 2014 में हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें पारदर्शिता, घरेलू विनियम, अभिनिर्धारण, बाजार पहुंच, राष्ट्रीय व्यवहार और विवाद निपटान के प्रावधान शामिल हैं।

पुनः विमर्श की आवश्यकता

  • विगत कुछ वर्षों से आसियान के साथ भारत के व्यापार घाटे में वृद्धि हुई है।
  • भारत ने आसियान समूह से भारत से आयात हेतु पारस्परिक FTA रियायतों का आग्रह किया है। इसके माध्यम से भारत व्यापार के आसियान के पक्ष में हो रहे झुकाव के कारण उत्पन्न व्यापार असंतुलन की स्थिति को समाप्त करना चाहता है।
  • भारत ने आसियान देशों से भारतीय बाजारों में चीनी उत्पादों के अतिप्रवाह को रोकने का भी आह्वान किया है। ज्ञातव्य है कि ये चीनी उत्पाद घरेलू उद्योगों को हानि पहुंचा रहे हैं।
  • भारत ने उत्पत्ति के नियमों (Rule of Origin: ROO) को सख्त करने तथा गैर-प्रशुल्क बाधाओं के निवारण और बेहतर बाजार पहुंच स्थापित करने हेतु सुदृढ़ प्रावधानों पर बल दिया है।
  • ROO किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत को निर्धारित करने के लिए आवश्यक मानदंड हैं।
  • FTA की उपयोगिता दर में सुधार करना भी महत्वपूर्ण है।
  • नीति आयोग के अध्ययन के अनुसार, भारतीय निर्यातकों द्वारा क्षेत्रीय व्यापार समझौतों की उपयोगिता दर अत्यल्प (5% और 25% के मध्य) है। इसका कारण नियमों पर विचार-विमर्श करने में आने वाली कठिनाइयां हैं।
  • इससे भारत को विभिन्न उत्पादों जैसे कि औषधि और सूचना प्रौद्योगिकी-सक्षम सेवाओं के लिए विनिर्माण केंद्र निर्मित करने में सहायता प्राप्त होगी।

स्रोत –द हिन्दू

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