भारत का पहला ग्रीनफील्ड अनाज–आधारित इथेनॉल संयंत्र
हाल ही में बिहार में भारत के पहले ग्रीनफील्ड अनाज-आधारित इथेनॉल संयंत्र ने कार्य करना शुरू कर दिया है ।
केंद्र सरकार द्वारा बिहार की इथेनॉल उत्पादन और संवर्धन नीति-2021 को मंजूरी देने के बाद से यह पहला संयंत्र है।
इथेनॉल उत्पादन से पेट्रोल की लागत कम करने में और रोजगार पैदा करने में मदद मिलेगी।
इस इथेनॉल संयंत्र को नवीनतम तकनीक का उपयोग करके बनाया गया है। यह संयंत्र किसी भी अपशिष्ट का उत्सर्जन नहीं करेगा।
इस प्रकार यह एक शून्य-तरल निर्वहन (Zero liquid discharge: ZLD) संयंत्र बन जाएगा। इस प्रकार यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल बन जाएगा।
शून्य–तरल उत्सर्जन (ZLD) के बारे में–
- यह जल उपचार का एक इंजीनियरिंग आधारित तरीका है। इसके तहत अपशिष्ट में मौजूद संपूर्ण जल को फिर से प्राप्त कर लिया जाता है और दषित पदार्थ केवल ठोस अपशिष्ट के रूप में रह जाते हैं।
- इसके लिए जल उपचार प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है। यह प्रौद्योगिकी अपशिष्ट जल का उपचार कर संदूषकों को एक स्थान पर जमा कर देती है।
जैव ईंधन की पीढ़ियां
जैव ईंधन की पीढ़ियों को इसके उत्पादन में प्रयुक्त कच्चे माल के आधार पर परिभाषित किया जाता है:
- पहली पीढ़ी का बायो–इथेनॉलः इसमें मक्का के बीज और गन्ने के मिश्रण का उपयोग किया जाता है ।
- दूसरी पीढ़ी का बायो–इथेनॉलः फसल कटने के बाद बचे अखाद्य कृषि अपशिष्ट का उपयोग किया जाता है।
- तीसरी पीढ़ी का बायो–इथेनॉलः सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है।
- चौथी पीढ़ी का बायो–इथेनॉलः इस पीढ़ी का जैव ईंधन कार्बन कैप्चर और स्टोरेज तकनीक के क्षेत्र में वनस्पति जीव विज्ञान तथा जैव-प्रौद्योगिकी (मेटाबॉलिक इंजीनियरिंग) के विकास का परिणाम है।
स्रोत –द हिन्दू