सहकारी समितियों पर, संसदीय समिति की सिफारिशें
सहकारी समितियों पर, संसदीय समिति ने सरकार से कहा है कि वह सुनिश्चित करे कि संघीय विशेषताएं बरकरार रहें ।
इस बारे में एक संसदीय स्थायी समिति ने निम्नलिखित सिफारिशें की हैं:
- राष्ट्रीय स्तर पर योजनाओं/कार्यक्रमों/गतिविधियों आदि को तैयार करते समय “अत्यधिक विवेक” का प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि देश की संघीय विशेषताएं प्रभावित न हों।
- सभी हितधारकों से ठीक से विचार-विमर्श करने के बाद ही नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति तैयार की जानी चाहिए।
- सभी मल्टी-स्टेट सहकारी समितियों के सदस्यों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कानूनी और संस्थागत ढांचे निर्मित किये जाने चाहिए।
- सहकारी संस्थाओं को अपना अस्तित्व बनाए रखने तथा वृद्धि और विकास करने के लिए उन्हें पर्याप्त अवसर या सुविधाएं प्रदान करने हेतु एक प्रभावी तंत्र तैयार करना चाहिए।
भारत में सहकारिता (Cooperatives In India):
- “सहकारी समितियां” संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची का एक विषय हैं।
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा, भाग IXB को संविधान में जोड़ा गया था।
- इस संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों के संबंध में कुछ बुनियादी नियम निर्धारित किये गए थे। उदाहरण के लिए- एक सहकारी समिति में अधिकतम 21 डायरेक्टर्स हो सकते हैं, समिति के निर्वाचित सदस्यों के लिए पांच वर्ष का फिक्स कार्यकाल आदि।
- हालांकि, भारत संघ बनाम राजेंद्र शाह और अन्य वाद (2021) में सुप्रीम कोर्ट ने 97वें संविधान संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि संशोधन के कुछ प्रावधान राज्य सूची के विषयों के संबंध में राज्य विधान-मंडलों की शक्तियों का उल्लंघन करते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सहकारी समितियां स्पष्ट रूप से राज्य के अधिकार क्षेत्र के दायरे में आती हैं। केवल मल्टी-स्टेट सहकारी समितियों के मामलों में ही संसद को कानून बनाने की अनुमति है।
सहकारी समितियों के लिए कानूनी ढांचा
अलग-अलग राज्यों ने अपने यहां की सहकारी समितियों के गवर्नेस के लिए राज्य सहकारी समिति कानून बनाए हैं। एक से अधिक राज्यों में कार्यरत सहकारी समितियों के लिए, केंद्र सरकार ने “मल्टी-स्टेट सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 2002” नामक एक कानून बनाया है।
स्रोत –द हिन्दू
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