विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 से जुड़े मुद्दे

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 से जुड़े मुद्दे

  • हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के समक्ष स्पष्ट किया कि गैर-कानूनी गतिविधियों में लिप्त होने की वजह से कुछ नागरिक समाज संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
  • UNHRC में भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड की सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (Universal Periodic Review: UPR) की जा रही है। इस समीक्षा के दौरान कुछ सदस्यों ने भारत के विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 से जुड़े मुद्दों पर चिंता व्यक्त की है।
  • भारत ने इस बात पर बल दिया कि मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों आदि की गतिविधियां देश के कानून के अनुरूप होनी चाहिए।
  • UPR के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश अन्य सभी सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा कर सकते हैं। इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार स्थितियों में सुधार करना है।
  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का एक अंतर-सरकारी कार्य समूह UPR संपादित करता है।

ये समीक्षाएं निम्नलिखित आधार पर की जाती है:

  • जिस देश की समीक्षा की जा रही है,
  • उसके द्वारा प्रदान की गई जानकारी,
  • स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों और समूह की रिपोर्ट,
  • संयुक्त राष्ट्र की अन्य संस्थाओं की रिपोर्ट, तथा
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों, गैर सरकारी संगठनों आदि से प्राप्त जानकारियां।

क्या है FCRA?

  • FCRA विदेशी अंशदान को नियंत्रित कर यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे अंशदान आंतरिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव न डालें।
  • वर्ष 1976 में FCRA को पहली बार अधिनियमित किया गया था। वर्ष 2010 में विदेशी अंशदान को विनियमित करने के लिये नए उपायों को अपनाने के पश्चात् इसे संशोधित किया गया।
  • FCRA विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले सभी संघों (Associations), समूहों (Groups) और NGOs पर लागू होता है। ऐसे सभी NGOs के लिये FCRA के तहत स्वयं को पंज़ीकृत करवाना अनिवार्य है।

FCRA में हालिया संशोधन

  • पंजीकरण के लिए गैर-सरकारी संगठनों के पदाधिकारियों हेतु आधार संख्या प्रस्तुत करना अनिवार्य बना दिया गया है।
  • सभी विदेशी अंशदान नई दिल्ली स्थित भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा में खोले गए बैंक खाते में प्राप्त करने होंगे।
  • कुछ व्यक्तियों/संगठनों को किसी भी प्रकार का विदेशी अंशदान स्वीकार करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • जिनमें शामिल हैं चुनाव में भाग ले रहे उम्मीदवार, अखबार के संपादक या प्रकाशक, न्यायाधीश, सरकारी कर्मचारी, किसी भी विधायिका के सदस्य, राजनीतिक दल आदि।

स्रोत – द हिन्दू

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