फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ‘ग्रे लिस्ट’
- ग्लोबल एंटी-टेररिस्ट वॉचडॉग फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने अपनी बैठक में पाकिस्तान को जून,2021 तक ग्रे लिस्ट (संदेहास्पद सूची) में बनाए रखने का फैसला किया है।
- यद्यपि भारत ने बहुत प्रयास किया कि आतंकवादियों को वित्तीय सहायता देने के कारण पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट (काली सूची) में डाला जाए।
- FATF द्वारा यह निर्णय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए 27-सूत्रीय कार्ययोजना का पूरी तरह से पालन करने में देश की विफलता के मद्देनजर लिया गया था।
FATF बैठक के मुख्य बिंदु:
- FATF (Financial Action Task Force) ने कहा कि, पाकिस्तान को 27 बिन्दुओं में से शेष तीन बिन्दुओं को लागू करने पर काम करने की आवश्यकता है।
- नामित व्यक्तियों या संस्थाओं की ओर से कार्य करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को लक्षित करते हुए आतंकीफंडिंग जांच और अभियोगों को प्रदर्शित करने की आवश्यकता है।
- यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि आतंकी फंडिंग के मुकदमों के परिणामस्वरूप प्रभावी प्रतिबंध लगाये गये हैं।
- इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 और 1373 में नामित आतंकवादियों के खिलाफ लक्षित वित्तीय प्रतिबंधों के प्रभावी कार्यान्वयन का प्रदर्शन करने की आवश्यकता है।
पृष्ठभूमि:
14 फरवरी, 2019 को कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों द्वारा केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के 40 से अधिक सैनिकों को आत्मघाती हमले में मार दिया गया था जिसकी जिम्मेवारी पाकिस्तान-स्थित संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने ली थी। भारत ने इस घटना से सम्बंधित एक रिपोर्ट भी तैयार की थी।इसके बाद FATF ने अक्टूबर, 2020 में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा था। और तय किया था कि FATF विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपीय संघ से पाकिस्तान को सहायता प्राप्त करने की अनुमति नहीं देगा।
भारत ने एफएटीएफ का सदस्य होने के नाते पाकिस्तान को बार-बार वित्तीय अपराधों को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा है।
ग्रे लिस्ट में डालने से क्या होगा?
- विश्लेषकों का कहना है कि FATF की निगरानी सूची में पाकिस्तान को डाले जाने से उसकी अर्थव्यवस्था को अधिक क्षति होगी और विदेशी निवेशकों और कंपनियों को उस देश में व्यवसाय करने में और भी कठिनाई होगी।
- कुछ वित्तीय संस्थाएँ पाकिस्तान के बैंकों के साथ लेन-देन करने से बचना चाहेंगी।
- FATF की निगरानी सूची में डाले जाने का कोई प्रत्यक्ष कानूनी निहितार्थ नहीं होता, किन्तु इससे यह होता है कि नियामक निकाय और वित्तीय संस्थाएँ कुछ अधिक ही जाँच-पड़ताल करती हैं जिसके फलस्वरूप व्यापार और निवेश ठंडा पड़ सकता है और लेन-देन की लागत बढ़ सकती है।
FATF क्या है?
- FATF एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो1989 में G7 की पहल पर स्थापित किया गया है।
- FATF का सचिवालयपेरिस केOECD मुख्यालय भवनमें स्थित है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव1267 का यह संकल्प 15 अक्टूबर, 1999 को अपनाया गया था। इस संकल्प के तहत, परिषद ने ओसामा बिन लादेन और सहयोगियों को आतंकवादी के रूप में घोषित किया था।
- यह एक नीति-निर्माता निकाय है जिसका काम विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय विधायी एवं नियामक सुधार लाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति तैयार करना है।
FATF (Financial Action Task Force) के उद्देश्य:
FATF (Financial Action Task Force) का उद्देश्य मनी लौन्डरिंग, आतंकवादियों को धनराशि मुहैया करने और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को खतरे में डालने जैसी अन्य कार्रवाइयों को रोकने हेतु कानूनी, नियामक और संचालन से सम्बंधित उपायों के लिए मानक निर्धारित करना तथा उनको बढ़ावा देना है।
ब्लैक लिस्ट और ग्रे लिस्ट क्या हैं?
FATF देशों के लिए दो अलग-अलग सूचियाँ संधारित करता है। पहली सूची में वे देश आते हैं, जहाँ मनी लौंडरिंग जैसी कुप्रथाएँ तो हैं परन्तु वे उसे दूर करने के लिए एक कार्योजना के प्रति वचनबद्ध होते हैं। दूसरे प्रकार की सूची में वे देश हैं जो इस कुरीति को दूर करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं। इनमें से पहली सूची को ग्रे लिस्ट और दूसरी को ब्लैक लिस्ट कहते हैं।
एक बार जब कोई देश ब्लैक लिस्ट में आ जाता है तो FATF अन्य देशों को आह्वान कर उनसे कहता है कि ब्लैक लिस्ट में आये हुए देश के साथ व्यवसाय में अधिक सतर्कता बरतें और यदि आवश्यक हो तो उसके साथ लेन-देन समाप्त ही कर दें।
आज की तिथि में दो ही देश ब्लैक लिस्ट में आते हैं – ईरान और उत्तरी कोरिया। सात देश ग्रे लिस्ट में हैं, जिनके नाम हैं – पाकिस्तान, श्रीलंका, सीरिया और यमन।
स्रोत – द हिन्दू