“नाइट्रोजन समृद्ध क्षेत्रों” में गिरता नाइट्रोजन का स्तर
हाल ही में किये गए नए अध्ययन के अनुसार, ‘नाइट्रोजन समृद्ध क्षेत्रों’ में नाइट्रोजन का स्तर गिरने का दुष्प्रभाव पौधों और जानवरों पर पड़ सकता है।
इस अध्ययन के अनुसार, विश्व भर में नाइट्रोजन की उपलब्धता में असंतुलन देखा गया है। जहां कुछ स्थानों पर इसकी अधिकता है, तो कुछ पर इसकी कमी है।
नाइट्रोजन (N2) जीवन के निर्माण घटकों में से एक है। यह सभी पौधों और जानवरों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। बिना नाइट्रोजन के पौधे धीरे-धीरे बढ़ते हैं। इनके फूल और फल भी छोटे होते हैं।
नाइट्रोजन अमीनो एसिड और न्यूक्लिक एसिड का भी एक मुख्य घटक है।
जब नदियों, अंतर्देशीय झीलों और जल के तटीय निकायों में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है, तो इसके परिणामस्वरूप सुपोषण (यूट्रोफिकेशन) हो सकता है।
सुपोषण के निम्नलिखित दुष्प्रभाव हो सकते हैं:
- हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन (algal blooms) हो सकता है,
- मृत क्षेत्र (डेड जोन) का निर्माण हो सकता है, और मछलियां मर सकती हैं।
- वायुमंडल, जीवमंडल और भूमंडल के बीच अलग-अलग रूपों में नाइट्रोजन के संचरण को नाइट्रोजन चक्र कहा जाता है।
- मृदा में स्थित जीवाणु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में “स्थिर करते हैं। नाइट्रोजन स्थिरीकरण पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
- अन्य जीवाणु अमोनिया को अमीनो एसिड और प्रोटीन में बदल देते हैं। फिर जानवर पौधों को खाते हैं और इस तरह वे प्रोटीन का सेवन करते हैं।
- नाइट्रोजन यौगिक पशु अपशिष्ट के माध्यम से मृदा में वापस आ जाते हैं। जीवाणु अपशिष्ट नाइट्रोजन को वापस नाइट्रोजन गैस में बदल देते हैं, जो वायुमंडल में फिर से वापस आ जाती है।
नाइट्रोजन के बारे में
पृथ्वी के वायुमंडल में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन गैस है। अपने गैसीय रूप में, नाइट्रोजन रंगहीन व गंधहीन होती है। आमतौर पर इसे निष्क्रिय गैस माना जाता है। तरल रूप में यह जल के समान दिखाई देती है।
स्रोत –द हिन्दू