इस्पात पर निर्यात शुल्क समाप्त
हाल ही में केंद्र सरकार ने लौह अयस्क पेलेट्स, पिग आयरन (कच्चा लोहा) तथा निर्दिष्ट इस्पात उत्पादों पर लगने वाला निर्यात शुल्क वापस ले लिया है।
इसके अतिरिक्त, एन्थ्रेसाइट / पल्वेराइज्ड कोल इंजेक्शन (PCI) कोयला, कोकिंग कोल, कोक और सेमी कोक तथा फेरोनिकेल पर आयात शुल्क रियायतें भी वापस ले ली गई हैं।
इससे पहले बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने के लिए यह निर्यात शुल्क लगाया गया था।
इस्पात दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग और निर्माण सामग्री है। इस सामग्री का उपयोग आमतौर पर इमारतों और बुनियादी ढांचों, ऑटोमोबाइल उपकरणों, रेलवे, पोत परिवहन, रक्षा, अंतरिक्ष क्षेत्रक आदि में किया जाता है।
भारत में इस्पात उद्योग के मजबूत फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज हैं। यह सकल घरेलू उत्पाद पर लगभग 1.4 गुना उत्पादन गुणक प्रभाव और 6.8 गुना रोजगार गुणक प्रभाव दर्शाता है।
बैकवर्ड लिंकेज से तात्पर्य है कि किसी उत्पाद के निर्माण में किन अन्य सामग्रियों ने योगदान दिया है। वहीं फॉरवर्ड लिंकेज का मतलब है उस उत्पाद से आगे कौन से अन्य उत्पाद निर्मित या उत्पादित किए जा सकते हैं।
भारत, वित्त वर्ष 2021 में 103 मीट्रिक टन के कुल उत्पादन के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा इस्पात उत्पादक रहा है।
इस्पात उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की पहलें
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): भारतीय इस्पात क्षेत्र में स्वचालित मार्ग से 100% FDI की अनुमति है।
उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना: विशेष इस्पात के लिए PLI योजना को मंजूरी दी गई है। इसमें पांच वर्ष की अवधि में 6,322 करोड़ रुपये (858.50 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का वित्तीय परिव्यय निर्धारित किया गया है।
राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2017: इसके तहत वर्ष 2030-31 तक 300 मीट्रिक टन इस्पात निर्माण क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
यह नीति उत्पादकों को नीति समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करके इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य निर्धारित करती है।
नीति में उच्च श्रेणी के ऑटोमोटिव इस्पात, विद्युत-इस्पात और विशेष इस्पात की कुल मांग को 100 प्रतिशत स्वदेश में ही पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
नई इस्पात नीति में घरेलू इस्पात उत्पादकों के लिये गुणवत्ता मानकों का विकास भी शामिल किया गया है जिससे उच्च श्रेणी के इस्पात का उत्पादन हो सके।
स्रोत – द हिन्दू