आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के आरक्षण की वैधता
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के आरक्षण की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।
- उच्चतम न्यायालय ने 3:2 बहुमत से 103वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा है।
- इस संशोधन के द्वारा शिक्षा और सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग (General) आबादी में EWS को 10% आरक्षण दिया गया है।
- इस संशोधन के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद- 15(6) और 16(6) जोड़े गए थे। इस संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।
- शीर्ष न्यायालय ने केशवानंद भारती मामले (1973) में मूल ढांचे का सिद्धांत दिया था। इसके तहत न्यायालय ने निर्णय दिया था कि संविधान के कुछ पहलुओं का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, और उनमें परिवर्तन भी नहीं किया जा सकता।
इस निर्णय से कई प्रमुख मुद्दों के समाधान में मदद मिलेगी:
प्रमुख मुद्दे –
- क्या केवल आर्थिक मानदंडों के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है?
- क्या SC/ST/SEBC/OBC को इस आरक्षण से बाहर रखना भेदभावपूर्ण है?
- क्या EWS के लिए आरक्षण, कोटा की 50% की सीमा का उल्लंघन कर सकता है?
- क्या निजी कॉलेजों को EWS आरक्षण देने के लिए बाध्य किया जा सकता है?
निर्णय में प्रमुख समाधान–
- केवल आर्थिक मानदंडों पर आधारित आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
- EWS को एक अलग वर्ग मानना उचित होगा। इसके अतिरिक्त, असमानों के साथ समान व्यवहार करना संविधान के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।
- 50% की सीमा पिछड़े वर्गों के लिए है। इसे पूर्ण रूप से अलग वर्ग को आरक्षण देने के लिए बढ़ा दिया गया है। इस वर्ग में EWS भी शामिल हैं।
- निजी संस्थानों में आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है। इसलिए, आरक्षण देने से इंकार नहीं किया जा सकता।
EWS आरक्षण
इसे एस.आर. सिन्हो आयोग (2010) की सिफारिशों पर लागू किया गया है । इसे 103वें संविधान संशोधन (2019) के तहत प्रस्तुत किया गया है।
आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (EWS)
- अनारक्षित श्रेणी के ऐसे लोग जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम है।
- साथ ही जिनकी संपत्ति का स्वामित्त्व कृषि भूमि 5 एकड़ से कम; आवासीय भूमि 200 वर्गमीटर से कम हो ।
भारत में आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानः
- सरकारी शिक्षण संस्थान: अनुच्छेद 15 (4), (5), और (6)
- सरकारी नौकरियाँ : अनुच्छेद 16(4) और (6)
- विधानमंडल (राज्य/संघ): अनुच्छेद 334
- OBC आरक्षण: मंडल आयोग की रिपोर्ट (1991) में प्रस्तुत किया गया। क्रीमी लेयर की अवधारणा केवल OBC आरक्षण (न कि SC/SC) में मौजूद है।
- जाति आधारित आरक्षण की सीमा का निर्धारण : 50% (इंदिरा साहनी वाद 1992 में)
- आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय का पहला बड़ा फैसला : चंपकम दोरैराजन वाद, 1951
स्रोत – द हिन्दू