इक्विलाइजेशन लेवी (समकारी शुल्क) एक “संप्रभु अधिकार”
हाल ही में वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा सेवाओं की आपूर्ति पर भारत जो इक्विलाइजेशन लेवी (समकारी शुल्क) लगाता है, यह उसका एक “संप्रभु अधिकार” है।
वित्त मंत्री ने बहुराष्ट्रीय उद्यमों द्वारा सेवाओं की आपूर्ति पर भारत द्वारा लगाए गए 2% इक्विलाइजेशन लेवी को उचित ठहराया है। वित्त मंत्री के अनसार देश के भीतर परिचालन से प्राप्त राजस्व पर कर लगाना एक संप्रभु अधिकार है।
प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियाँ और ई-कॉमर्स कंपनियाँ, भारत से अनिवासी कंपनियों पर लगाए गए 2% इक्विलाइजेशन लेवी को वापस लेने की मांग कर रही हैं।
एक अंतरिम उपाय के रूप में इक्वलाइजेशन लेवी की अवधारणा वर्ष 2015 में प्रस्तुत की गई थी। इसे डिजिटल लेनदेन के कारण उभरती समस्या से निपटने हेतु तीन उपायों में से एक के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इसका प्रस्ताव आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (Base Erosion and Profit Shifting: BEPS) परियोजना के स्तंभ-1 कार्य योजना में किया था।
इसमें दो स्तंभ शामिल हैं:
- स्तंभ–1: यह लगभग 100 सबसे बड़ी और सर्वाधिक मुनाफा कमाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों (20 अरब यूरो से अधिक का वैश्विक कारोबार और 10% से अधिक का मुनाफा) पर लागू होता है। यह कंपनियों के मुनाफे का कुछ भाग उन क्षेत्राधिकार में साझा करता है, जहां वे अपना उत्पाद बेचती हैं या अपनी सेवाएं प्रदान करती हैं।
- स्तंभ–2: यह बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, जैसे कि 750 मिलियन यूरो से अधिक वार्षिक राजस्व वाली कंपनियों पर है। यह कंपनियों को वर्ष 2023 से 15% के है वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट टैक्स के दायरे में लाता है।
BEPS बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उपयोग की जाने वाली चोरी या अपवंचन संबंधी रणनीतियों को संदर्भित करता है। इसके तहत ये कंपनियां कर का भुगतान करने से बचने के लिए कर नियमों में व्याप्त खामियों एवं परस्पर-विरोधी प्रावधानों का लाभ उठाती हैं।
स्रोत –द हिन्दू