भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन “मैत्री” ने पहचानी गई EMIC तरंगों का अध्ययन किया
हाल ही में, भारतीय वैज्ञानिकों ने भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन ‘मैत्री’ में “इलेक्ट्रोमैग्नेटिक आयन साइक्लोट्रॉन (EMIC )” तरंगों की पहचान की थी।
अब पहचानी गई इन तरंगों की विशेषताओं का अध्ययन किया जा रहा है। यह अध्ययन निम्न कक्षाओं में स्थापित उपग्रहों पर विकिरण पट्टी में मौजूद ऊर्जावान कणों के प्रभाव को समझने में मदद कर सकता है।
EMIC तरंगों के बारे में
- ये तरंगें पृथ्वी के आंतरिक चुंबकमंडल (magnetosphere) में दर्ज किए गए विविक्त (Discrete) विद्युत चुंबकीय उत्सर्जन (अनुप्रस्थ प्लाज्मा तरंगें ) हैं।
- प्लाज्मा एक अत्यधिक गर्म (superheated) पदार्थ है । यह पर्याप्त ऊर्जा वाली एक गैस है, जिससे आयनित गैस बनाने के लिए इलेक्ट्रॉन्स को परमाणुओं से अलग कर दिया जाता है ।
- ये तरंगें भूमध्यरेखीय अक्षांशों में उत्पन्न होती हैं और चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के साथ प्रसारित होती हैं। इनके फुटप्रिंट उच्च अक्षांश आयनमंडल (वायुमंडल की एक परत ) में प्राप्त होते हैं ।
- इन तरंगों को अंतरिक्ष के साथ-साथ जमीन पर स्थित मैग्नेटोमीटर में भी दर्ज किया जा सकता है ।
- ये तरंगें किलर इलेक्ट्रॉनों की बौछारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये बौछारें अंतरिक्ष – जनित प्रौद्योगिकी / उपकरणों के लिए खतरनाक हैं ।
- किलर इलेक्ट्रॉन ऐसे इलेक्ट्रॉन होते हैं, जिनकी गति प्रकाश की गति के निकट होती है। ये पृथ्वी की विकिरण पट्टी का निर्माण करते हैं ।
- चुंबकमंडल एक ग्रह के चारों ओर का वह क्षेत्र है, जिसमें अंतर्ग्रहीय (interplanetary) अंतरिक्ष के चुंबकीय क्षेत्र की बजाय स्वयं उस ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव होता है।
- पृथ्वी के चुंबकमंडल पर पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव है । यह पृथ्वी के वायुमंडल को सूर्य से आने वाले कई प्रकार के विकिरणों से बचाता है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस