निष्पादन कला और ललित कला की शिक्षा में सुधारों पर रिपोर्ट प्रस्तुत
हाल ही में संसदीय समिति ने निष्पादन कला और ललित कला (Performing and Fine Arts) की शिक्षा में सुधारों पर रिपोर्ट प्रस्तुत की है ।
इस संसदीय समिति की सिफारिशें राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NEP) 2020 के अनुरूप हैं । NEP, कला को शिक्षा प्रणाली के साथ एकीकृत करने का समर्थन करती है।
शिक्षा में कलाओं को एकीकृत करने का महत्वः
- सीखने के जीवंत और प्रयोगात्मक परिवेश का विकास होता है ।
- प्रत्येक छात्र का समग्र (संज्ञानात्मक, भावात्मक और मनोप्रेरक) विकास होता है।
- इससे परिकल्पना, अभिव्यक्ति, संचार कौशल, दृश्यावलोकन, रचनात्मकता, परिदृश्य निर्माण एवं रचनात्मक समस्या समाधान का विकास होता है।
- इसके अलावा, विविधतापूर्ण, आलोचनात्मक और चिंतनशील सोच के विकास में भी मदद मिलती है। सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय संपदा के रूप में समझने की छात्र की क्षमता को बढ़ाती है।
- यह दिव्यांग बच्चों में संवेदी और अन्य कौशलों के विकास के लिए सहायक है।
- इससे उन्हें सीखने की प्रक्रिया की मुख्यधारा में तेजी से शामिल किया जा सकता है।
- यह अलग-अलग परिप्रेक्ष्यों और दृष्टिकोणों के विकास में मदद करती है।
समिति की प्रमुख सिफारिशें:
- कक्षा 10 तक कला शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- कला शिक्षा में भारतीय लोक कलाओं और स्थानीय परंपराओं जैसे कि लोक कथाओं, कहानियों, नाटकों, चित्रकारी आदि पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। इसमें संगीत, नृत्य, दृश्य कला और रंगमंच को भी शामिल किया जाना चाहिए।
- कला को समर्पित एक केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किया जाना चाहिए। इसके क्षेत्रीय केंद्र प्रमुख कला/सांस्कृतिक स्थलों पर स्थापित होने चाहिए।
- अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के समान कला शिक्षा के लिए एक अखिल भारतीय विनियामक निकाय का गठन किया जाना चाहिए।
- शिक्षा प्रणाली में कला को बढ़ावा देने के लिए व्यापक जन अभियान चलाया जाना चाहिए।
स्रोत –द हिन्दू