आर्थिक सर्वेक्षण में हरित वित्तपोषण पर बल
हाल ही में जारी किये गए आर्थिक सर्वेक्षण में हरित वित्तपोषण के ढांचे पर बल दिया गया है।
हरित वित्त (ग्रीन फाइनेंस) पर्यावरण हरित वित्तपोषण की दृष्टि से संधारणीय परियोजनाओं में प्रयुक्त होने वाली वित्तीय व्यवस्थाओं को संदर्भित करता है। इसमें जलवायु परिवर्तन के पहलुओं को अपनाने वाली परियोजनाएं भी शामिल हैं।
इनमें स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाएं, स्वच्छ परिवहन, ऊर्जा कुशल परियोजनाएं आदि शामिल हैं। उदाहरण के लिए हरित भवन और अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाएं, टिकाऊ जल प्रबंधन परियोजनाएं आदि।
ऐसी परियोजनाओं की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए नए वित्तीय साधन स्थापित किए जा रहे हैं। इनमें ग्रीन बांड व कार्बन बाजार के साधन (जैसे-कार्बन टैक्स) शामिल हैं। साथ ही, ग्रीन बैंक और ग्रीन फंड जैसे नए वित्तीय साधनों की भी स्थापना की जा रही है।
हरित वित्त का महत्वः
यह सतत आर्थिक विकास के समक्ष मौजूद चुनौतियों का समाधान करने में मदद करेगा। इसके अलावा, यह पर्यावरण की रक्षा करने और पर्याप्त रूप से सुधार करने में भी सहायता करेगा।
हरित वित्तपोषण से संबंधित चुनौतियां:
उच्च उधार लागत, पर्यावरण अनुपालन के झूठे दावे, हरित ऋण की कोई निश्चित परिभाषा न होना आदि।
भारत में आरंभ की गई पहलें
- सतत वित्त और जलवायु खतरों पर विनियामक पहलों के लिए RBI का सतत वित्त समूह कार्यरत है।
- वित्त मंत्रालय ने सतत वित्त पर टास्क फोर्स का गठन किया है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र उधार (PSL) योजना के तहत लघु नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को भी शामिल किया है।
स्रोत – द हिन्दू