शरणार्थियों पर प्रारूप आदर्श कानून में संशोधन: मानवाधिकार आयोग
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शरण और शरणार्थियों पर प्रारूप आदर्श कानून में संशोधन करना चाहिए।
हाल ही में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने एक परिचर्चा का आयोजन किया था। इसमें आयोग ने पूरे देश में एकरूपता और कानूनी शुचिता सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रीय कानून का समर्थन किया है।
शरण और शरणार्थी विषय पर एक आदर्श कानून दशकों पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने तैयार किया था। लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया गया है।
शरणार्थियों पर भारत का पक्ष
- भारत वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अमिसमय या इसके वर्ष 1987 के प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है। भारत के पास न तो राष्ट्रीय शरणार्थी संरक्षण का कोई ढांचा है और न ही इस पर कोई नीति या कानून है।
- हालांकि, भारत ने पड़ोसी देशों से बड़ी संख्या में आने वाले शरणार्थियों को शरण देना जारी रखा है। साथ ही,यह अन्य देशों (मुख्य रूप से अफगानिस्तान और म्यांमार) के नागरिकों के मामलों में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) के अधिदेश का सम्मान करता है।
- अप्रैल 2021 तक, लगभग 300,000 लोगों को शरणार्थी के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
- भारतीय कानून के तहत विदेशी नागरिक और ‘शरणार्थी के बीच कोई अंतर नहीं किया गया है।
- विदेशी विषयक अधिनियम, 1946; पासपोर्ट अधिनियम, 19673; प्रत्यर्पण अधिनियम, 1982; नागरिकता अधिनियम, 1956 आदि जैसे कानून ‘विदेशी नागरिकों’ और ‘शरणार्थियों, दोनों पर लागू होते हैं।
- इन कानूनों के तहत, विदेशियों को हिरासत में लिया जा सकता है और जबरन निर्वासित किया जा सकता है।
- नंदिता हक्सर बनाम मणिपुर राज्य, 2021 मामले में, मणिपुर उच्च न्यायालय ने नॉन-रिफाउलमेंट (अवापसी नियम) के सिद्धांत का उल्लेख किया था। यह सिद्धांत शरणार्थी को उसके मल-देश में वापस नहीं भेजे जाने से संबंधित है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में शामिल है।
शरणार्थी कौन हैं?
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के अनुसार एक शरणार्थी वह व्यक्ति है, जिसे उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण अपना देश छोड़ने के लिए विवश किया गया है।
- एक शरणार्थी, किसी प्रवासी और आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति से अलग होता है। स्वेच्छा से अपने मूल देश को छोड़ने वाले व्यक्ति को प्रवासी कहा जाता है। आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति उसे कहा जाता है, जिसने विवश होकर अपना मूल स्थान छोड़ दिया है, लेकिन उसने राष्ट्रीय सीमा को पार नहीं किया है।
- ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ के सिद्धांत का उल्लेख संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय 1951 के अनुच्छेद 33 में किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार उत्पीड़न से पीड़ित होकर अपना देश छोड़ने वाले व्यक्ति को उसके मूल देश में लौटने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। वहां उसके जीवन या स्वतंत्रता के समक्ष गंभीर खतरा हो सकता है।
स्रोत –द हिन्दू