उच्च बाढ़ स्तर के पास निर्माण की अनुमति नहीं
हाल ही में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के पैनल ने कहा है कि उच्च बाढ़ स्तर के पास निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
उत्तराखंड में चमोली के तपोवन-रैणी क्षेत्र में एक हिमनद में दरार के कारण धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों में भयंकर बाढ़ आई थी। इस घटना ने भारी नुकसान पहुंचाया था।
इसी त्रासदी के बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पैनल का गठन किया गया था।
पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हिमनदीय बर्फ और चट्टान की वजह से मलबे के प्रवाह के व्यापक प्रभाव वाली यह भारत में पहली दर्ज की गई घटना थी।
इस तरह से चट्टानों के गिरने और हिमनदीय हिमस्खलन की घटनाएं आल्प्स, रूसी काकेशस, कनाडा और नेपाल में घटित हुई हैं।
भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पैनल ने निम्नलिखित सिफारिशें की हैं:
- भविष्य में लगभग रियल टाइम में ऐसी घटनाओं को दर्ज करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो/ISRO) को उपग्रह-समूहों की क्षमता बढ़ाने की जरुरत है।
- हिमनदीय अध्ययन में दोहराव से बचने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर हिमनद अनुसंधान अध्ययन और प्रबंधन केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए।
- उच्च बाढ़ स्तर के निकट धार्मिक स्थानों, भवनों और परियोजनाओं की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि विशेष अध्ययन के बाद इनकी मंजूरी नहीं दी जाती है।
- पर्वतीय क्षेत्र विनियमन, भवन उप-नियमों आदि जैसी कानूनी रूपरेखाएं विकसित करने की आवश्यकता है।
- चूंकि, उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में अलग-अलग तरह के खतरों की संभावना बनी रहती है, इसलिए इस क्षेत्र में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर विचार करने की आवश्यकता है।
स्रोत –द हिन्दू