विकास वित्तीय संस्थान (DFI)
- बैंक बोर्ड ब्यूरो को विकास वित्तीय संस्थान (Development Financial Institution – DFI) के प्रबंध निदेशकों (MDs) तथा उप प्रबंध निदेशकों (DMDs) का चयन करने का कार्य सौपा जा सकता है।
- ज्ञात हो कि केंद्रीयबजट 2021-22 मे भारत की आर्थिक विकास दर को स्थिर रखने हेतु केंद्र सरकार ने दीर्घकालिक अवसंरचना निर्माण की स्थापना पर पुनः विचार करने का प्रस्ताव प्रस्तावित किया है।
विकास वित्तीय संस्थान (DFI) की पृष्ठभूमि
- DFI विकासशील देशों में‘अवसंरचना वित्तपोषण एवं विकास हेतु राष्ट्रीय बैंक’ (National Bank for Financing Infrastructure and Development) और बुनियादी ढांचा के वित्तपोषण करने वाले विशेष संस्थान हैं।
- विकास वित्तीय संस्थान लंबी अवधि तक चलने वाले पूंजी-गहन निवेशों हेतु दीर्घकालिक और कम दरों पर ऋण प्रदान करते हैं, जैसे कि शहरी बुनियादी ढाँचा, खनन, भारी उद्योग तथा सिंचाई प्रणाली आदि।
- यह महत्वाकांक्षीराष्ट्रीय अवसंरचना पाइप लाइन (National Infrastructure Pipeline– NIP) परियोजना के वित्तपोषण हेतु प्रमुख केंद्र है।
- विकास बैंक, वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न होते हैं
- वर्ष 1948 में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (IFCI) की स्थापना के साथ ही भारत में पहला DFI खोला गया था।
- वर्ष 1970-80 के दशक के दौरान विकास वित्तीय संस्थान को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA)में वृद्धि करने के नाम पर एक कमजोर संस्था के रूप में देखा गया| परिणामस्वरूप नरसिंह समिति (1991) ने विकास वित्तीय संस्थान (डीएफआई) को भंग करने की सिफारिश की और तत्कालीन सक्रिय विकास वित्तीय संस्थानों को वाणिज्यिक बैंकों में बदल दिया गया।
बैंक बोर्ड ब्यूरो (BBB)
- बैंकिग क्षेत्र की चुनौतियों से निपटने हेतु वर्ष 2014 में भारतीय रिज़र्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन द्वारा एक्सिस बैंक के पूर्व अध्यक्ष ‘पी. जे. नायक’ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।
- पी. जे. नायक समिति की सिफारिशों के आधार पर 28 फरवरी’ 2016 को भारत सरकार ने एक स्वायत्त अनुशंसात्मक निकाय के रूप में बैंक बोर्ड ब्यूरो के गठन को मजूरी मिली ।
- इसे सार्वजनिकक्षेत्र के बैंकों मे कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार लाने, क्षमता निर्माण आदि का काम सौंपा जाता है। बैंक बोर्ड ब्यूरो एक सार्वजनिक प्राधिकरण है जैसा कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में परिभाषित किया गया है।
- ‘बैंक बोर्ड ब्यूरो’ में एक अध्यक्ष तथा तीन पदेन सदस्य, अर्थात सार्वजनिक उद्यम विभाग के सचिव, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव और भारतीय रिज़र्व बैंक के उप-गवर्नर होते हैं।
- इनके अतिरिक्त, बोर्ड में पाँच विशेषज्ञ सदस्य भी होते हैं, जिनमें से दो निजी क्षेत्र से चुने जाते हैं।
प्रमुख कार्य
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के निदेशक मंडल (पूर्णकालिक निदेशक और गैर- कार्यकारी अध्यक्ष) की नियुक्ति हेतु सरकार को सुझाव देना।प्रधान मंत्री कार्यालय के परामर्श से, वित्त मंत्रालय द्वारा इन नियुक्तियों पर अंतिम निर्णय लिया जाता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं और इनके अधिकारियों तथा निदेशक मंडल के कार्यनिष्पादन संबंधी डेटा का डेटा बैंक बनाकर सरकार के साथ साझा करना।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के प्रबंधकीय कर्मियों हेतु नीति और आचार संहिता बनाने व इसे लागू करने के संबंध में सरकार को परामर्श देना।
- बैंकों को व्यापार/कारोबार की रणनीति बनाने और पूँजी जुटाने की योजना में सहायता प्रदान करना, आदि।
स्रोत: द हिंदू