कश्मीर घाटी की प्राचीन टीलानुमा संरचनाओं का विनाश
हाल ही में कश्मीर घाटी की प्राचीन टीलानुमा संरचनाओं का विनाश किया जा रहा है ।
कश्मीर घाटी में विकास और निर्माण कार्य संबंधी गतिविधियों के कारण “करेवा” (Karewas) टीलों की खुदाई की जा रही है। इसके परिणामस्वरूप, इनका विनाश हो रहा है। करेवा अत्यधिक उपजाऊ जलोढ़ मृदा के निक्षेप हैं।
करेवा हिमनदीय मृत्तिका (glacial clay) और हिमोढ़ में शामिल अन्य सामग्रियों के सरोवरी निक्षेप (झील में निक्षेप) हैं। ये निक्षेप अनियोजित निर्माण कार्य, मृत्तिका के अवैध खनन आदि के कारण नष्ट हो रहे हैं।
करेवा (इसे वुद्र भी कहा जाता है) का निर्माण कैसे हुआ?
- प्लीस्टोसीन युग (26 से 11,700 वर्ष पूर्व) के दौरान पीर पंजाल के उत्थान के कारण जल अपवाह एक क्षेत्र में अवरुद्ध हो गया था।
- इसके परिणामस्वरूप,एक झील क्षेत्र (लगभग 5000 वर्ग किमी) विकसित हो गया था। इससे कश्मीर घाटी में एक बेसिन जैसी संरचना का निर्माण हुआ।
- कुछ समय पश्चात, इस झील का जल बारामुला गार्ज के माध्यम से अपवाहित हो गया। इस प्रकार, करेवा निक्षेप अवशेष के रूप में बचा रह गया।
करेवा का महत्व:
कृषि संबंधीः
- यह कश्मीरी केसर (जाफरान), बादाम, सेब और कई अन्य नकदी फसलों की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
- कश्मीर घाटी की केसर विरासत एवं खेती को खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की वैश्विक कृषि विरासत प्रणाली के रूप में मान्यता दी गई है।
- केसर को वर्ष 2020 में भौगोलिक संकेतक (GI) दर्जा प्रदान किया गया था।
पुरातात्विक महत्वः यहां कई मानव सभ्यताओं और बस्तियों के जीवाश्म एवं अवशेष मौजूद हैं।
स्रोत –द हिन्दू