विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा (डीआरई) आजीविका अनुप्रयोग को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए मसौदा नीति ढांचा
हाल ही में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (DRE) के आजीविका संबंधी अनुप्रयोगों के लिए एक नीतिगत रूपरेखा का प्रारूप जारी किया है।
मंत्रालय द्वारा जारी इस फ्रेमवर्क का उद्देश्य एक सक्षम तंत्र के विकास की सुविधा प्रदान करना है। यह तंत्र भारत में विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा (DRE) के आजीविका संबंधी अनुप्रयोगों को व्यापक रूप से अपनाने में मदद करेगा।
DRE एक ऐसी प्रणाली है, जो स्थानीय तरीके से बिजली उत्पन्न करने, भंडारित करने और वितरित करने के लिए अक्षय ऊर्जा का उपयोग करती है। उदाहरण के लिए रूफटॉप सोलर पैनल, माइक्रो या मिनी-ग्रिड आदि।
भारत में अक्षय ऊर्जा की कुल 90 GW स्थापित क्षमता में से केवल 5% हिस्सा DRE का है।
नीतिगत रूपरेखा के प्रारूप के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
- बाजार उन्मुख तंत्र को सक्षम बनाना।
- वित्त तक आसान पहुंच प्रदान करके विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा के अपनाये जाने की दर में वृद्धि करना।
- नवाचार और अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से DRE आधारित आजीविका के प्रभावी अनुप्रयोगों का विकास करना।
- उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के विकास और प्रबंधन को प्रोत्साहित करना।
- मुख्य ग्रिड के साथ-साथ हाइब्रिड मोड में संचालित मिनी/माइक्रो-ग्रिड द्वारा संचालित अनुप्रयोगों का उपयोग करना।
- उच्च क्षमता वाले आजीविका उत्पादों के लिए ऊर्जा-कुशल मानकों की स्थापना करना।
DRE आधारित आजीविका की आवश्यकता क्यों है ?
- ग्रामीण क्षेत्रों में डीजल पर निर्भरता को कम करने और अंततः इस निर्भरता को समाप्त करना जरूरी है।
- यह ग्रिड आपूर्ति का पूरक विकल्प है।
- यह सोलर ड्रायर, सौर या बायोमास संचालित शीतगृहों (कोल्ड स्टोरेज) आदि जैसे अनुप्रयोगों की आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाता है।
प्रमुख चुनौतियां:
- उचित वित्तीय विकल्पों का अभाव है,उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है, उपभोक्ताओं में सामर्थ्य की कमी है,गुणवत्तापूर्ण उत्पादों/मानकों का अभाव है आदि।
DRE संबंधी प्रमुख पहलें इस प्रकार हैं:
पी.एम. कुसुम योजना,रूफटॉप सोलर योजना, सौर चरखा मिशन आदि।
स्रोत –द हिन्दू