मौलिक कर्तव्यों को अनिवार्य रूप से लागू करने हेतु याचिका दायर
हाल ही में उच्चतम न्यायालय में “व्यापक और सुपरिभाषित कानूनों के माध्यम से मौलिक कर्तव्यों को लागू करने की मांग करने वाली एक याचिका दायर की गई है।
उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा है। देशभक्ति और राष्ट्र की एकता सहित अन्य मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद ‘51A’ में किया गया है।
मौलिक कर्तव्यों को कानूनी रूप से लागू करने के पक्ष में याचिका में प्रस्तुत तर्क रंगनाथ मिश्रा मामले में उच्चतम न्यायालय ने तर्क दिया था कि, मौलिक कर्तव्यों को कानूनी और सामाजिक स्वीकृति के माध्यम से लागू किया जाना चाहिए।
अधिकार और कर्तव्य सह संबंधित हैं। वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में विरोध की गैर-कानूनी प्रवृतियां देखी जा रहीं हैं। अपनी मांगों को मनवाने के लिए सरकार को मजबूर करने हेतु सड़क और रेल मार्गों को अवरुद्ध किया जा रहा है।
हालांकि, मौलिक कर्तव्यों को प्रवर्तनीय बनाने में जो मुद्दे शामिल हैं, वे मूल रूप से नागरिकों के ‘नैतिक दायित्व हैं।
इसके अलावा, ये ऐसे मूल्यों का उल्लेख करते हैं, जो भारतीय परंपरा, पौराणिक कथाओं, धर्मों और प्रथाओं का हिस्सा रहे हैं।
विदित हो कि नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान में शामिल किया गया था। इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान के भाग -A में सम्मिलित किया गया था।
मौलिक कर्तव्य कानूनी रूप से लागू नहीं किए गए हैं। मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा सोवियत संघ (USSR) से ली गई है।
मौलिक कर्तव्य केवल भारतीय नागरिकों पर ही लागू होते हैं, विदेशियों पर नहीं।
मौलिक कर्तव्य
भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
- संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
- भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
- देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे। यह भावना धर्म. भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
- हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका संरक्षण करे;
- प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे व उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे। इससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा;
- माता-पिता या संरक्षक, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे। यह कर्तव्य 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया था।
स्रोत –द हिन्दू