शून्य बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने के लिए समिति का गठन
हाल ही में सरकार शून्य बजट आधारित कृषि को बढ़ावा देने के लिए समिति का गठन करेगी।
राष्ट्र के नाम प्रधान मंत्री के संबोधन के हिस्से के रूप में, एक समिति (केंद्र, राज्य, किसानों और विशेषज्ञों के प्रतिनिधियों के साथ) की घोषणा की गई। यह समिति, निम्नलिखित प्रकार के मामलों पर निर्णय लेगीः
- शून्य-बजट कृषि अर्थात् प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देना।
- देश की भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए फसल पैटर्न में बदलाव करना।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाना।
शून्य-बजट प्राकृतिक कृषि (Zero-budget Natural Farming: ZBNF) पारंपरिक भारतीय प्रथाओं पर आधारित रसायन मुक्त कृषि की एक विधि है।
इसे मूल रूप से महाराष्ट्र के निवासी सुभाष पालेकर द्वारा प्रचारित किया गया था। यहरासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों एवं गहन सिंचाई द्वारा संचालित हरित क्रांति के तरीकों के विकल्प के रूप में प्रचलित है।
ZBNF को केंद्रीय बजट 2019-20 में प्रस्तुत किया गया था।
ZBNF 4 स्तंभों पर आधारित है
यह लागत को कम करने के लिए रसायनों, गहन सिंचाई आदि की आवश्यकता को समाप्त करती है। इसके अतिरिक्त, शून्य-बजट के लिए अंत:-शस्यन (इंटर-क्रॉपिंग) के माध्यम से न्यूनतम लागत सुनिश्चित करती है।
ZBNF के लाभ – रासायनिक कृषि की तुलना में जल और विद्युत की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। ZBNE, स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके कृषि की लागत को कम करती है। साथ ही, यह मृदा के पोषण, उर्वरता, कीट और बीज आदि का प्रबंधन भी करती है।
इसमें चार घटक भामिल हैं
- ‘बीजामृतम’ अर्थात गाय के गोबर और मूत्र आधारित मिश्रण का उपयोग करके बीजों का सूक्ष्म जीवाणु लेपन।
- मृदा के सूक्ष्म जीवों में वृद्धि करने के लिए ‘जीवामृत’ अर्थात गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, दाल के आटे, जल और मृदा के मिश्रण का प्रयोग करना।
- जल के वाष्पीकरण को रोकने और मृदा में ह्यूमस के निर्माण मेंयोगदान करने के लिए मल्चिग, या मृदा की सतह पर कार्बनिक पदार्थों की एक परत बनाना।
- मृदा में एक अनुकूल सूक्ष्म जलवायु के माध्यम से वाफसा या मृदा का वातन।
स्रोत –द हिन्दू