भारत–जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन
हाल ही में सम्पन्न 14वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान “भारत-जापान विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी (India-Japan Special Strategic and Global Partnership)” को और आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया।
भारत और जापान, दोनों क्वाड तथा आसियान गुपिंग में शामिल हैं। साथ ही, दोनों देश हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसेफिक) क्षेत्र के संबंध में भी एक साझा दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं।
भारत पिछले कुछ सालों से जापानी आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance: ODA) का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा है।
14वें भारत–जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन पर एक नज़रः
इस शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (Clean Energy Partnership: CEP) की शुरुआत की। इसे वर्ष 2007 में स्थापित “भारत-जापान ऊर्जा वार्ता” के समग्र दायरे के तहत आरंभ किया गया है।
इसका उद्देश्य निम्नलिखित के संबंध में सहयोग करना है:
- सतत आर्थिक विकास हासिल करने के संबंध में,
- जलवायु परिवर्तन का समाधान करने के संबंध में, और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के संबंध में।
इस दौरान संयुक्त क्रेडिट तंत्र (Joint Crediting Mechanism) की स्थापना हेतु आगे भी चर्चा जारी रखने पर प्रतिबद्धता दोहराई गई। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में निजी पूंजी प्रवाह से संबंधित पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है।
दोनों देशों के बीच सतत शहरी विकास पर एक सहयोग ज्ञापन (Memorandum of Cooperation: MoC) पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
जापान, “LeadIT” नामक जलवायु पहल में शामिल होगा। यह भारत और स्वीडेन के बीच एक प्रकार का जलवायु पहल है। इसे भारी उद्योग में रूपांतरण को बढ़ावा देने के लिए आरंभ किया गया है।
यहाँ LeadIT का आशय उद्योग में रूपांतरण के लिए नेतृत्वकारी समूह (Leadership Group for Industry Transition: LeadIT) से है।
यह कम कार्बन की दिशा में आगे बढ़ने हेतु एक स्वैच्छिक पहल है। इसके तहत विशेष रूप से लौह और इस्पात, एल्यूमीनियम, आदि जैसे हार्ड-टू-एबेट सेक्टर (hard-to-abate sectors) पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
हार्ड–टू–एबेट सेक्टरः
- यह ऐसे क्षेत्रक को संदर्भित करता है, जहाँ अन्य क्षेत्रकों की तुलना में रूपांतरण (transformation) कठिन होता है। इस क्षेत्रक में तकनीक की कमी या अधिक लागत के चलते रूपांतरण मुश्किल हो जाता है।
- साथ ही, भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा वर्ष 2023-2024 हेतु संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) में अस्थायी सीट के लिए जापान की उम्मीदवारी के संबंध में भारत के समर्थन को दोहराया गया।
- पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6: यह कुछ पक्षकारों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions: NDCs) के कार्यान्वयन में स्वैच्छिक सहयोग को जारी रखने को मान्यता प्रदान करता है।
- इसके तहत पक्षकार अपने शमन (mitigation) और अनुकूलन (adaptation) कार्यों में उच्च महत्वाकांक्षा के साथ-साथ सतत विकास एवं पर्यावरणीय अखंडता को बढ़ावा देते हैं।
स्रोत –द हिन्दू