भूटान और चीनमें तीन–चरणीय प्रक्रिया हेतु समझौता ज्ञापन
हाल ही में सीमा वार्ता में तीव्रता लाने हेतु भूटान और चीन ने तीन-चरणीय प्रक्रिया हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं ।
इस तीन-चरणीय कार्य योजना का उद्देश्य दोनों राष्ट्रों के मध्य सीमा संबंधी विवादों का शीघ्र समाधान करना है। यह कार्य योजना गैर-सीमांकित सीमाओं के मुद्दे का समाधान करने हेतु दीर्घावधि से लंबित सीमा वार्ताओं को नई गति प्रदान करेगी।
अब तक दोनों देशों द्वारा वर्ष 1984 और वर्ष 2016 के मध्य 24 दौर की सीमा वार्ता संपन्न हो चुकी है, जो मुख्य रूप से उत्तरी और पश्चिमी भूटान के क्षेत्रों पर केंद्रित रही हैं।
वर्ष 1984 के पश्चात् से, चीन–भूटान सीमा विवाद मुख्य रूप से दो क्षेत्रों परकेंद्रित रहा है:
- इसके अंतर्गत भारत, चीन और भूटान की त्रि-संगम सीमा पर स्थित डोकलाम वअन्य क्षेत्रों सहित भूटान का पश्चिमी क्षेत्र तथा;
- जकारलुंग (Jakarlung) और पासमलुंग (Pasamlung) घाटियों सहित भूटानका उत्तरी क्षेत्र (495 वर्ग किमी का क्षेत्र)।
हाल ही में, चीन ने भूटान के पूर्वी सकतेंग (Sakteng) क्षेत्र पर भी दावा कियाहै। इसमें भूटान का सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य भी शामिल है।
भारत पर चीन–भूटान सीमा विवाद का प्रभाव
- यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर (इसे चिकन नेक के रूप में भी जाना जाता है) के संबंध में सामरिक खतरा उत्पन्न करता है, क्योंकि यह उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों और संपूर्ण पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ता है।
- भूटान के पूर्वी क्षेत्र की अरुणाचल प्रदेश से निकटता।
- भारत और चीन के मध्य भूटान एक बफर स्टेट के रूप में कार्य करता है।
स्रोत –द हिन्दू