हिंद महासागर क्षेत्र में चरम पवन-लहरों से युक्त जलवायु का अनुमान

हिंद महासागर क्षेत्र में चरम पवनलहरों से युक्त जलवायु का अनुमान

हाल ही में, भारतीय वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है जिसके अनुसार बदलती जलवायु-परिस्थितियों में हिंद महासागर क्षेत्र में चरम पवन-लहरों से युक्त जलवायु का अनुमान लगाया गया है।

अध्ययन के अनुसार भविष्य में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण चीन सागर और दक्षिण हिंद महासागर क्षेत्रों में ऊंची लहरें देखी जा सकती हैं। चरम पवन-लहरों से तटीय बाढ़ के खतरे में वृद्धि होगी। साथ ही, तटीय बाढ़ से होने वाले प्रभाव तटरेखा की संरचना में बदलाव लाएंगे।

दक्षिण हिंद महासागर के ऊपर चरम लहर की ऊंचाई लगभग 1 मीटर अधिक होती देखी गई है। उत्तरी हिंद महासागर, उत्तर पश्चिमी अरब सागर, बंगाल की उत्तरपूर्वी खाड़ी और दक्षिण चीन सागर के क्षेत्रों में लहर की ऊंचाई में 0.4 मीटर की अधिकतम वृद्धि का अनुमान है।

पवनों और लहरों में अनुमानित परिवर्तन समुद्र तल के दबाव में बदलाव और गर्म समुद्र के तापमान में परिवर्तन के अनुरूप है।

लहरों के तेज होने के निम्नलिखित प्रभाव होंगे:

  • बाढ़ का खतरा बढ़ेगा,
  • तटरेखा की संरचना प्रभावित हो सकती है,
  • बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचेगा,
  • भूजल में लवणीय जल प्रवेश कर सकता है,
  • फसलों को नुकसान पहुंचेगा और
  • कई तरह के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण मानव आबादी प्रभावित हो सकती है।

ये गतिविधियां इस क्षेत्र में तटीय समुदायों के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। ये पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रति सर्वाधिक सुभेद्य समुदाय हैं।

भारत के तटीय समुदायों में जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए की गई कुछ पहलें:

  • आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के समर्थन से एक परियोजना संचालित की जा रही है। यह पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल आजीविका विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई एक परियोजना है।
  • विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM) परियोजना का संचालन किया जा रहा है।

स्रोत द हिन्दू

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