कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क (CDN) के विनियमन का मुद्दा
हाल ही में कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क (CDN) के विनियमन के मुद्दे पर बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों और दूरसंचार कंपनियों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया है ।
- CDN के विनियमन के मुद्दे से उपजे विवाद से नेट न्यूट्रैलिटी पर फिर से बहस शुरू हो गई है। दूरसंचार कंपनियां कंटेंट वितरण नेटवर्क (CDN) को विनियमित करने के प्रस्ताव का समर्थन कर रही हैं।
- CDN के विनियमन को नेट न्यूट्रैलिटी पर भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की सिफारिशों में शामिल नहीं किया गया था। ये सिफारिशें वर्ष 2017 में प्रस्तुत की गई थीं।
नेट न्यूट्रैलिटी या नेटवर्क तटस्थताः
- यह एक अवधारणा है। इसके अनुसार इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) को किसी विशेष ऐप, वेबसाइट्स या सेवाओं के पक्ष में अनुचित भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्हें अपने नेटवर्क के माध्यम से गुजरने वाले सभी डेटा के साथ निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए।
- CDN, अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में स्थित सर्वरों के समूह होते हैं। ये इंटरनेट कंटेंट का तेजी से वितरण करने के लिए एक साथ मिलकर कार्य करते हैं।
- इस प्रकार, इंटरनेट कंपनियां जैसे कि सर्च इंजन (जैसे गूगल) और OT कंटेंट प्रदाता (नेटफ्लिक्स आदि) तेजी से सेवाओं की आपूर्ति करने के लिए CDN सेवाओं का उपयोग करेंगे। CDN प्रबंधन सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम के आधार पर यह गणना करता है कि कौन-सा सर्वर कंटेंट की मांग करने वाले उपयोगकर्ता के सबसे नजदीक है। इन गणनाओं के आधार पर ही यह कंटेंट का वितरण करता है।
- हालांकि, दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि यदि CDNs तक पहुंच को समान शतों पर सुनिश्चित नहीं किया जाता है, तो इससे नेट न्यूट्रैलिटी का मुद्दा उठ सकता है। इस स्थिति में प्राथमिकता प्राप्त कंपनियों के ग्राहकों को बेहतर गुणवत्ता वाली CDN सेवा प्रदान की जा सकती है।
स्रोत –द हिन्दू