कोयला युक्त क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 को मंजूरी
हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला युक्त क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 के तहत अधिग्रहित भूमि के उपयोग की नीति को मंजूरी दी ।
कोयला युक्त क्षेत्र (Coal Bearing Areas: CBA): अधिनियम में किसी भी ऋण भार से मुक्त, कोयला युक्त भूमि के अधिग्रहण का प्रावधान किया गया है। अधिग्रहण के बाद भूमि पर सरकारी कंपनी का स्वामित्व बना रहेगा।
यह नीति इस तरह की भूमि के निम्नलिखित शतों के तहत उपयोग के लिए एक रूपरेखा प्रदान करती है:
- यह भूमि कोयला खनन गतिविधियों के लिए अब उपयुक्त नहीं है या आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है।
- ऐसी भूमि से कोयले का खनन कर लिया गया है, या उसे कोयला रहित कर दिया गया है, और ऐसी भूमि को फिर से प्राप्त कर लिया गया है।
इस नीति के लाभ
- कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के भू-क्षेत्रों को अवसंरचना विकास के लिए संयुक्त उद्यमों के माध्यम से निजी संस्थाओं को भी पट्टे (लीज़) पर दिया जा सकता है।
- इससे CIL को अपनी परिचालन लागत में कटौती करने में मदद मिलेगी।
- कोयला गैसीकरण परियोजनाएं भी व्यावहारिक बनेंगी, क्योंकि कोयले को दूर-दराज जगहों पर ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
- परियोजना से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन में मदद मिलेगी।
एक अन्य संबंधित सुर्खियों में, कोयला मंत्रालय ‘माइन क्लोजर फ्रेमवर्क पर सहयोग के लिए विश्व बैंक के साथ विचार-विमर्श कर रहा है।
खान बंद करने की योजना के अंतर्गत पुनर्वास प्रक्रिया एक निरंतर कार्यक्रम है। इसके तहत खनन कार्यों द्वारा भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणवत्ता में आई कमी को दूर किया जाता है। इस कमी को उसी स्तर तक दूर करना है, जो सर्वमान्य हो। खान बंद करने के लिए दिशा-निर्देश वर्ष 2009 और वर्ष 2013 में जारी किए गए थे।
स्रोत – द हिंदू