गिद्धों के लिए जहरीली दो दवाओं के उत्पादन वितरण पर रोक
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जानवरों के उपयोग में आने वाली दवा ‘केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक’ और उनके फॉर्मूलेशन के उत्पादन, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगा दिया है।
यह प्रतिबंध ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 26 A के तहत एक अधिसूचना द्वारा किया गया है ।
प्रमुख तथ्य:
- यह दोनों दवाइयां उन तीन दवाइयों में शामिल हैं जिन्हें गिद्धों के लिए जानलेवा (vulture-toxic) माना जाता है ।
- इन दोनों दवाओं पर संरक्षणवादी प्रतिबंध लगाने कीबहुत समय से मांग करते रहे हैं। जबकि तीसरी दवा है निमेसुलाइड जिस पर प्रतिबन्ध नहीं लगा है।
- कुल मिलाकर छह गैर-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लमेट्री दवाएं (non-steroidal anti-inflammatory) हैं जो गिद्धों के लिए जहरीली हैं।
- हालांकि पर्यावरणविदों और संरक्षणवादी इन निवारक एसेक्लोफेनाक और केटोप्रोफेन और इसके फॉर्मूलेशन के पशु चिकित्सा उपयोग के लिए तत्काल प्रभाव से रोकने के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कदम की सराहना कर रहे हैं।
- विदित हो कि वर्ष 2006 में भारत ने पशु चिकित्सा हेतु डाइक्लोफेनाक के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि यह गिद्धों के लिए जहरीला पाया गया था।
- बाद में संरक्षणवादियों ने अन्य तीन दवाओं पर भी भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) के समक्ष मामला उठाने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संपर्क किया था। इस मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी।
- संरक्षणवादी सुरक्षित विकल्प के रूप में मीलॉक्सिकेम और टॉल्फेनैमिक एसिड का सुझाव दे रहे हैं। एसिक्लोफेनाक बड़े जानवरों के शरीर में डाइक्लोफेनाक में बदल जाता है, और गिद्ध उनके शव को खाते हैं।
- आईवीआरआई और सहयोगियों द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, एसिक्लोफेनाक भैंसों में डाइक्लोफेनाक में परिवर्तित हो जाता है, जैसा कि गायों में हुआ, जिससे दक्षिण एशिया में पहले से ही संकट का सामना कर रहे जिप्स गिद्धों के लिए खतरा पैदा हो गया है।
- हालांकि बाजार में जानवरों के लिए सुरक्षित विकल्प मौजूद हैं, सुरक्षित विकल्प प्रदान करने और निमेसुलाइड की विषाक्तता स्थापित करने के लिए और अधिक शोध किए जा रहे हैं।
गिद्ध के बारे में:
- यह मरा हुआ जानवर खाने वाले पक्षियों की एक प्रजाति है, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है ।
- गिद्ध वन्यजीवों की बीमारियों को नियंत्रण में रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारत गिद्धों की 9 प्रजातियां पाई जाती हैं इन सभी नौ प्रजातियों में से अधिकांश के विलुप्त होने का खतरा है।
- बियरडेड, लॉन्ग बिल्ड और ओरिएंटल व्हाइट बैक्ड वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act), 1972 की अनुसूची-1 में संरक्षित हैं। बाकी ‘अनुसूची IV’ के अंतर्गत संरक्षित हैं।
स्रोत – द हिन्दू