भारत में बैंकिंग के रुझान और प्रगति, 2021-22 रिपोर्ट
- हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ‘भारत में बैंकिंग के रुझान और प्रगति, 2021-22’ रिपोर्ट जारी की है।
- यह रिपोर्ट बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के अनुपालन से संबंधित एक वैधानिक प्रकाशन है।
- इस रिपोर्ट में सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों सहित बैंकिंग क्षेत्र के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- सात वर्षों के अंतराल के बाद वर्ष 2021-22 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) की समेकित बैलेंस शीट में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज की गई है।
- SCBs का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (GNPA) अनुपात वर्ष 2017-18 में अपने शीर्ष (9 प्रतिशत) पर था। यह मार्च 2022 के अंत तक घटकर 8 प्रतिशत रह गया है।
- शहरी सहकारी बैंकों के वित्तीय प्रदर्शन में सुधार देखा गया है। पूंजी बफर में बढ़ोतरी, GNPA अनुपात में गिरावट और बेहतर लाभप्रदता जैसे संकेतक इस सुधार का संकेत देते हैं।
NPA में गिरावट के कारण
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSBs) ऋणों को बट्टे खाते में (Write off) डाल रहे हैं।
- निजी क्षेत्र के बैंकों (PVBs) में ऋणों में सुधार देखा गया है।
- बड़े ऋणों की हिस्सेदारी कम हुई है।
- NPA और ऋण को बट्टे खाते में डालने के मध्य तुलना
ऋण को बट्टे खाते में डालना
- कर्जदार द्वारा ऋण चुकाने में विफल होने पर बैंक कर्ज को बट्टे खाते में डाल देता है।
- इसकी वसूली की संभावना बहुत कम रह जाती है ।
- ऋणदाता ऐसे ऋण/ NPA को अपनी बैलेंस शीट में परिसंपत्तियों के स्थान पर हानि के रूप में दर्ज करता है ।
- ऋण को बट्टे खाते में डालने के बाद प्रोविजनिंग नहीं होने से धन की बचत होती है और टैक्स देनदारी कम होती है ।
- ऋण को बट्टे खाते में डालना ऋण माफी (Loan waive off) से अलग है।
- ऋण माफी के तहत ऋण खाते को पूर्ण रूप से रद्द कर दिया जाता है।
गैर निष्पादित परिसंपत्तियां
- ऐसा ऋण या अग्रिम जिसके मूलधन या ब्याज का भुगतान निर्धारित तिथि से 90 दिनों तक नहीं किया गया है।
- यह किसी भी बैंक की वित्तीय अवस्था को मापने का पैमाना है। यदि इसमें वृद्धि होती है, तो यह बैंक के लिये चिंता का विषय बन जाता है।
- गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ (non-performing assets-NPA) किसी भी अर्थव्यवस्था के लिये बोझ होती हैं। ये देश की बैंकिंग व्यवस्था को रुग्ण बनाती हैं।
NPA की निम्नलिखित तीन श्रेणियां हैं:
- अवमानक (Substandard) परिसंपत्तियां: 12 महीने या इससे कम अवधि की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां ।
- संदेहास्पद (Doubtful) परिसंपत्तियां: 12 महीने की अवमानक परिसंपत्तियां ।
- नुकसान वाली (Loss) परिसंपत्तियां: इनकी वसूली असंभव हो जाती है।
स्रोत – द हिन्दू