बांस आधारित पुन: प्रयोज्य स्ट्रॉ (Bamboo-based Reusable Straw)
हाल ही में ‘भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण’ ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाई जाने वाली बांस की प्रजाति ‘शिज़ोस्टैचियम अंडमानिकम’ से विकसित बांस-आधारित पुन: प्रयोज्य स्ट्रॉ के लिए पेटेंट प्राप्त किया है।
भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय ने बांस आधारित पुन: प्रयोज्य स्ट्रॉ (reusable straw) और उसके निर्माण’ के लिए भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण को पेटेंट प्रदान किया है ।
बांस की रूपात्मक-शारीरिक संरचना आधुनिक सिंथेटिक पीने के स्ट्रॉ से मिलती जुलती थी, जिसने इस पर्यावरण-अनुकूल आविष्कार को प्रेरित किया है ।
यह प्लास्टिक के स्ट्रॉ को जैविक विकल्प से बदलने की बांस की आर्थिक क्षमता पर प्रकाश डालता है।
प्रमुख बिंदु :
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर लगभग तीन दशक पहले बांस की प्रजाति शिज़ोस्टैचियम अंडमानिकम (Schizostachyum andamanicum) की खोज की गई थी।
- पुन: प्रयोज्य स्ट्रॉ और इसके निर्माण को पेटेंट दिए जाने से इसकी आर्थिक क्षमता को बढ़ावा मिलेगा ।
- बांस की इस प्रजाति की विशेषता लंबे इंटरनोड्स के साथ एक पतली बड़ी खोखली खड़ी कलम (तना) है और इसमें स्ट्रॉ के रूप में विकसित होने की क्षमता है। यह प्लास्टिक स्ट्रॉ को जैविक विकल्प से बदलने का एक नया तरीका है।
- यह अंडमान और निकोबार द्वीप समूह द्वीप के किसानों और बांस उत्पादकों की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए एक भविष्य की तकनीक है, अगर वे व्यावसायिक स्तर पर इस स्थानिक बांस प्रजाति की खेती करते हैं।
- पेटेंट के लिए आवेदन 2018 में किया गया था और पेटेंट 2023 में प्राप्त हुआ। स्थानिक बांस के कलम इंटरनोड्स की रूपात्मक-शारीरिक संरचना आधुनिक सिंथेटिक पीने के स्ट्रॉ के समान थी, जिससे स्ट्रॉ के आविष्कार का विचार आया।
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के बारे में
- यह भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अधीन एक वनस्पति वैज्ञानिक संस्थान है। इसकी स्थापना वर्ष 1890 में की गई थी।
- इसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के पादप-संसाधनों का सर्वेक्षण करना था। इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थित है।
- भारत का एक प्रमुख संगठन है जो देश की पौधों की विविधता के वैज्ञानिक अनुसंधान और दस्तावेज़ीकरण के लिए जिम्मेदार है।
स्रोत – पी.आई.बी.