कृत्रिम जल पुनर्भरण तकनीक
हाल ही में भारत सरकार जल की समस्या को हल करने के लिए नए भूजल पुनर्भरण तरीकों को अपनाने पर विचार कर रही है।
केंद्र सरकार ने उपचारित जल का उपयोग करके भूजल का (कृत्रिम जल पुनर्भरण तकनीक) कृत्रिम पुनर्भरण करने की योजना बनाई है। इसके माध्यम से तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में जल की कमी की समस्या को दूर किया जा सकता है।
कृत्रिम पुनर्भरण के तहत भूजल स्तर में वृद्धि करने के लिए सतही जल के प्राकृतिक अपवाह में सुधार किया जाता है। सुधार के लिए उपयुक्त सिविल निर्माण तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
कृत्रिम पुनर्भरण तकनीकें:
- प्रत्यक्ष सतह तकनीकें: इनमें बाढ़, बेसिन या टपकन टैंक, जलधारा वृद्धि, नाला और खांचा (Ditch and furrow) प्रणाली, अति सिंचाई आदि शामिल हैं।
- प्रत्यक्ष उप–सतह तकनीकें: इनमें अंतःक्षेपण (इंजेक्शन) कुएं या पुनर्भरण कुएं, पुनर्भरण गड्ढे और शाफ्ट, खोदे गए कुएं का पुनर्भरण, बोरहोल फ़्लडिंग, प्राकृतिक नए जलमार्ग, गुहाओं को जल से भरना आदि शामिल
- संयोजन सतह – उप–सतह तकनीकें।
- अप्रत्यक्ष तकनीकें: सतही जल स्रोतों से फिर से भरना, जलभृत में सुधार करना आदि शामिल है ।
भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के निम्नलिखित लाभ हैं:
- जिन क्षेत्रों में अधिक विकास के कारण जलभृत (aquifer) सूख गए हैं, वहां जल की सतत प्राप्ति सुनिश्चित होती है।
- भविष्य की जरूरतों के लिए अतिरिक्त सतही जल का संरक्षण और भंडारण करने में मदद मिलती है। तनुकरण (dilution) के माध्यम से मौजूदा भूजल की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है।
- यदि तमिलनाडु में यह प्रयास सफल रहता है, तो इसे देश के अन्य हिस्सों में भी लागू किया जाएगा।
- हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2025 तक, उत्तर-पश्चिमी और दक्षिणी भारत के बड़े क्षेत्रों में भूजल की उपलब्धता की स्थिति अति गंभीर हो जाएगी।
स्रोत –द हिन्दू