विश्व को नए रोगाणुरोधी प्रतिरोध टीकों की आवश्यकता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इन टीकों के निर्माण की स्थिति पर पहली रिपोर्ट जारी की है।
इस रिपोर्ट का शीर्षक है: ‘प्रीक्लिनिकल और क्लीनिकल विकास में जीवाण्विक टीकों का एक विश्लेषण 2021’।
वर्तमान में सूक्ष्मजीवरोधी या रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) उत्पन्न करने वाले जीवाण्विक रोगजनकों के संक्रमण को रोकने के लिए कुछ नए टीके विकसित किये जा रहे हैं।
AMR तब होता है, जब जीवाणु, विषाणु, कवक और परजीवी समय के साथ स्वयं में बदलाव कर लेते हैं और इन पर दवाओं का कोई असर नहीं होता है।
इस स्थिति में संक्रमण का उपचार करना कठिन हो जाता है। बीमारी फैलने लगती है और गंभीर रूप ले लेती है। इससे मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
इस रिपोर्ट में 61 ऐसे टीकों का उल्लेख किया गया है, जो क्लीनिकल विकास के अलग-अलग चरणों में हैं।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
टीके निम्नलिखित चार प्राथमिकता वाले जीवाण्विक रोगजनकों के खिलाफ उपलब्ध हैं:
- न्यूमोकोकल रोग (स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया),
- हिब (हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी),
- तपेदिक (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस- टीबी) और
- टाइफाइड बुखार (साल्मोनेला टाइफी)।
- वर्तमान में तपेदिक (टीबी) के खिलाफ उपलब्ध बेसिलस कैलमेट-गुएरिन (BCG) टीके टीबी से पर्याप्त रूप से रक्षा नहीं करते हैं। शेष तीन टीके प्रभावी हैं।
- रिपोर्ट में मौजूदा टीकों को समान रूप से और सभी जगह पहंचाने की अपील की गयी है। साथ ही, इसमें AMR से संबंधित टीकों के परीक्षणों में तेजी लाने की बात भी कही गयी है।
- टीकों को विशेष रूप से उस आबादी तक पहुंचाने का विशेष उल्लेख किया गया है, जिनके पास सीमित संसाधन हैं, लेकिन उन्हें इनकी सबसे अधिक जरूरत है। हालांकि, AMR जीवाण्विक संक्रमण से कहीं अधिक गंभीर खतरा है। ऐसे में इसके नियंत्रण के लिए टीके का विकास बहुत आवश्यक है।
AMR को नियंत्रित करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम
- एंटीबायोटिक (प्रतिजैविक) प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए चेन्नई घोषणा पत्र, 2012 जारी किया गया है।
- भारत में रेड लाइन अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान की मांग है कि ‘केवल प्रिस्क्रिप्शन’ आधारित एंटीबायोटिक दवाओं को रेड लाइन से मार्क किया जाना चाहिए।
- इसका लक्ष्य एंटीबायोटिक दवाओं की ओवर-द-काउंटर बिक्री को हतोत्साहित करना है।
- AMR पर राष्ट्रीय कार्य योजना (2017-21) तैयार की गयी है।
स्रोत –द हिन्दू