हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा गठित ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ अपने गठन के पांच महीने के अंदर ही निरस्त कर दिया गया है।
- पिछले साल अक्तूबर मे राष्ट्रपति ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण संकट से निपटने हेतु “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश, 2020” को मंजूरी दी थी।
- अध्यादेश की अवधि खत्म होने तथा अध्यादेश को संसद का सत्र शुरू होने के 6 हफ्ते के भीतर संसद मे पेश नहीं करने के कारण निरस्त कर दिया गया।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के बारे में
- इस आयोग के तहत 18 सदस्यीय (एक अध्यक्ष और 17 सदस्य) वायु गुणवत्ता प्रबंधन की स्थापना का प्रावधान किया गया था।
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन द्वारा जरी दिशानिर्देशो के उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ पांच साल कैद और एक करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया था।
- पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के पूर्व सचिव एमएमकुट्टी को इस ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन ’ का अध्यक्ष बनाया गया था।
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु निर्मित यह आयोग पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) का स्थान लेने वाला था।
- पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) को सुप्रीम कोर्ट ने देश में प्रदूषण के मामलों में सर्वोच्च निगरानी निकाय के रूप में गठित किया था।
- आयोग वायु गुणवत्ता सूचकांक के बेहतर तालमेल, अनुसंधान, पहचान और वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं के समाधान की दिशा में काम करने हेतु समर्पित था।
अध्यादेश क्या होता है?
- संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति के पास संसद के सत्र में न होने की स्थिति में अध्यादेश जारी करने की शक्ति है।
- अध्यादेश की शक्ति संसद द्वारा बनाए कानून के बराबर ही होती है और यह तत्काल लागू हो जाता है।
- हालांकि, इस अध्यादेश को अगले सत्र में सत्र शुरू होने के 6 सप्ताह के भीतर दोनों सदनों से पास होना ज़रूरी है, अन्यथा इसकी अवधि समाप्त होने पर यह निष्क्रिय हो जाता है।
- अध्यादेश का प्रावधान संविधान निर्माताओं ने यह विचार करके किया था कि इससे तत्कालीन परिस्थति पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है अध्यादेश की अवधि न्यूनतम छ: सप्ताह तथा अधिकतम छः मास होती है।
स्रोत –द हिन्दू