आसियान डिफेंस मिनिस्टर्स मीटिंग प्लस (ADMM – Plus) संपन्न
हाल ही में,9वीं आसियान डिफेंस मिनिस्टर्स मीटिंग प्लस (ADMM – Plus) संपन्न हुई है।
इस बैठक को संबोधित करते हुए भारत के रक्षा मंत्री ने कहा कि दक्षिण चीन सागर (SCS) पर आचार संहिता (CoC) को अंतर्राष्ट्रीय कानून के संगत होना चाहिए।
इसे विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून पर कन्वेंशन (United Nations Convention on the Law of the Sea -UNCLOS) का पालन करना चाहिए।
यह आचार संहिता आसियान और चीन के बीच निर्धारित है। इसका उद्देश्य दक्षिण चीन सागर में संघर्ष को कम करना है।
दक्षिण चीन सागर में चीन के समुद्री और प्रादेशिक विस्तारवादी दावे आसियान के कुछ सदस्य देशों के साथ विवाद का कारण बन रहे हैं।
उपर्युक्त आचार संहिता को तैयार करने की प्रक्रिया वर्ष 1992 में शुरू हुई थी। उस समय आसियान ने दक्षिण चीन सागर में प्रादेशिक विवादों पर अपना पहला वक्तव्य (statement ) जारी किया था ।
वर्ष 2002 में, ‘दक्षिण चीन सागर के पक्षकारों के लिए आचार घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस पर दिशा-निर्देशों के मसौदे को वर्ष 2011 में अपनाया गया था।
दक्षिण चीन सागर का महत्व
वैश्विक व्यापारः विश्व के संपूर्ण समुद्री व्यापार का लगभग एक तिहाई इसी क्षेत्र से होता है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ भारत का लगभग 55% व्यापार भी इसी क्षेत्र से होता है ।
आर्थिक क्षमताः यह क्षेत्र मत्स्य संसाधनों, तेल, गैस और दुर्लभ मृदा धातुओं के भंडार से समृद्ध है ।
भू–सामरिक अवस्थितिः यह प्रशांत महासागर को हिंद महासागर से जोड़ता है।
भारत का पक्ष
ऐतिहासिक रूप से, भारत ने दक्षिण चीन सागर में देशों के प्रतिस्पर्धी दावों को संतुलित करने का प्रयास किया है। इस मामले में भारत, चीन को नाराज करने से बचता रहा है।
हालांकि, भारत के हालिया वक्तव्यों से पता चलता है कि भारत इस मामले में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
भारत के रुख में यह बदलाव उसकी एक्ट ईस्ट नीति और समग्र हिंद-प्रशांत विजन से निर्देशित है।
UNCLOS के बारे में
यह विश्व के महासागरों और समुद्रों के लिए कानून एवं व्यवस्था हेतु व्यापक प्रावधान करता है। इसमें महासागरों और उनके संसाधनों के समस्त उपयोगों को शासित करने वाले नियम बनाए गए हैं।
इसे वर्ष 1982 में अपनाया गया था। भारत ने भी इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं।
स्रोत – द हिन्दू