700,000 फिलिस्तीनियों के व्यापक विस्थापन के 75 वर्ष पूर्ण 

700,000 फिलिस्तीनियों के व्यापक विस्थापन के 75 वर्ष पूर्ण 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने 75 वर्ष पहले हुए 700,000 फिलिस्तीनियों के व्यापक विस्थापन को याद किया है।

वर्ष 1948 में फिलिस्तीनियों को उस भूमि से सामूहिक पलायन करना पड़ा था, जिसे आगे चलकर इजरायल के नाम से एक अलग राष्ट्र के रूप में रूपांतरित होना था । पलायन की इस घटना को नकबा के रूप में जाना जाता है। अरबी भाषा में नकबा का अर्थ है- आपदा।

इजरायल – फिलिस्तीन संघर्ष

यहूदी 20वीं शताब्दी की शुरुआत से ही अपने पूर्वजों की संपत्ति के रूप में फिलिस्तीनी भूमि पर अपना दावा करते हैं, जबकि यहां अरब सदियों से बहुसंख्यक हैं।

वर्ष 1917 में ब्रिटेन ने बाल्फोर घोषणा पत्र जारी किया था । इसका उद्देश्य फिलिस्तीन में यहूदी लोगों के लिए एक राष्ट्रीय गृह स्थापित करना था । वर्ष 1920-40 के दौरान यूरोप (विशेषकर जर्मनी) में यहूदियों का बहुत अधिक उत्पीड़न होने लगा था। इसके कारण फिलिस्तीन में यहूदियों का प्रवासन बढ़ गया था ।

वर्ष 1947 में, संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन को एक अलग यहूदी और अरब राज्य में विभाजित करने का संकल्प पारित किया गया था ।

इस संकल्प को अरब देशों ने खारिज कर दिया था। हालांकि, वर्ष 1948 में इजरायल राज्य की घोषणा कर दी गई। इसके परिणामस्वरूप पहला अरब-इजरायल युद्ध हुआ ।

युद्ध विराम के तहत, जॉर्डन ने वेस्ट बैंक पर और मिस्र ने गाजा पर अधिकार कर लिया । यरुशलम को इजरायल और जॉर्डन के बीच विभाजित कर दिया गया।

वर्ष 1967 में अरब और इजरायल के बीच छह दिवसीय युद्ध शुरू हुआ।

युद्ध के अंत में, इजरायल ने मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप और गाजा पट्टी पर जॉर्डन के वेस्ट बैंक और पूर्वी यरूशलम पर तथा सीरिया के गोलन हाइट्स पर राज्यक्षेत्रीय नियंत्रण प्राप्त कर लिया था ।

इजरायल का अभी भी वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम पर अधिकार है। यहां वह यहूदी बस्तियां स्थापित कर रहा है।

भारत की इजराइल के लिए नीति

भारत ने इस मामले में डी- हाइफनेशन की नीति अपनाई है। इस नीति का अर्थ था कि इजराइल के साथ भारत का संबंध द्विपक्षीय आपसी मुद्दों पर आधारित होगा। यह संबंध भारत के फिलिस्तीन के साथ संबंधों से स्वतंत्र और पृथक होगा ।

स्रोत – यू. एन .

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