हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महिला को उसके 33 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है।
- उच्च न्यायालय ने मेडिकल बोर्ड की सलाह को अस्वीकार करते हुए भ्रूण में प्रमस्तिष्कीय (cerebral) विकारों के आधार पर गर्भपात की अनुमति दी है। न्यायालय ने कहा कि बच्चे को जन्म देना, महिला की इच्छा पर निर्भर है।
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MTP) अधिनियम, 1971 में 24 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी गई है।
- इस अवधि के बाद केवल “भ्रूण में गंभीर विकारों के मामले में ही गर्भ समाप्ति की अनुमति दी गई है।
- हाल ही में, एक महत्वपूर्ण निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अविवाहित महिलाओं को भी उनके 20-24 सप्ताह के गर्भ का सुरक्षित और कानूनी तरीके से गर्भपात कराने का अधिकार है।
- राज्य / केंद्र शासित प्रदेश द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड यह तय करता है कि 24 सप्ताह के बाद गर्भ को समाप्त किया जा सकता है या नहीं। गर्भपात नैतिक दृष्टिकोण से बहस का विषय रहा है।
- भारतीय कानून एक महिला को गर्भधारण के लंबे समय के बाद भी गर्भपात कराने के अधिकार को मान्यता देता है।
प्रो – चॉइस मूवमेंट (माता पर केंद्रित )
- एक महिला को अपने शरीर पर पूरा अधिकार है।
- जन्मजात दोष बच्चे के लिए घातक हो सकते हैं या आजीवन पीड़ा का कारण बन सकते हैं। इससे माता-पिता आजीवन दुखी रह सकते हैं।
- राज्य, महिलाओं की आयु ( नाबालिग ) और मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त, किसी भी बच्चे को अवांछित रूप से जन्म नहीं दिया जाना चाहिए ।
प्रो–लाइफ मूवमेंट (बच्चे के जीवन पर केंद्रित )
- भ्रूण के जीवन के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए ।
- उन्नत प्रौद्योगिकी से भविष्य में जन्मजात विकारों को ठीक किया जा सकता है।
- यह मानवता के खिलाफ है। साथ ही, यह राज्य का दायित्व है कि वह भ्रूण सहित सभी के जीवन की रक्षा करे ।
MTP अधिनियम के बारे में:
- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (MTP ACT) को सुरक्षित गर्भपात के संबंध में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण पारित किया गया था।
- प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करने के एक ऐतिहासिक कदम में भारत ने व्यापक गर्भपात देखभाल प्रदान करके महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाने हेतु MTP अधिनियम 1971 में संशोधन किया।
- नए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम 2021 को व्यापक देखभाल के लिये सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु चिकित्सीय, उपचारात्मक, मानवीय या सामाजिक आधार पर सुरक्षित और वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने हेतु लाया गया है।
स्रोत – द हिन्दू