पाणिनि के 2500 साल पुराने संस्कृत नियम की जटिलता को सुलझा लिया गया
- हाल ही में भारतीय छात्र ऋषि अतुल राजपोपत ने पाणिनि के 2500 साल पुराने संस्कृत नियम की जटिलता को सुलझा लिया है।
- समान शक्ति के दो नियमों के बीच संघर्ष की स्थिति में पाणिनि ने एक ‘मेटारूल’ सिखाया था।
- परंपरागत रूप से, विद्वानों ने ‘मेटारूल के अर्थ की इस रूप में व्याख्या की है कि दो नियमों में संघर्ष की स्थिति में व्याकरण के क्रम में बाद में आने वाले नियम का उपयोग किया जाता है। हालांकि, यह व्याख्या व्याकरण की दृष्टि से अक्सर गलत परिणाम देती थी ।
- नए शोध में तर्क दिया गया है कि इस तरह के संघर्षों में, पाणिनि चाहते थे कि किसी शब्द के बाएं और दाएं पक्ष पर लगने वाले नियमों में हमें दाईं ओर लगने वाले नियम को चुनना चाहिए ।
शोध का महत्व:
- यह शोध संस्कृत अध्ययन के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है। साथ ही, कंप्यूटर द्वारा भी संस्कृत व्याकरण को पढ़ाया जा सकेगा।
पाणिनि और अष्टाध्यायी के बारे में
- पाणिनि संस्कृत व्याकरण के विद्वान थे। उन्होंने ध्वनि विज्ञान ( Phonetics), स्वर विज्ञान (Phonology) और शब्द – संरचना (Morphology) का एक व्यापक तथा वैज्ञानिक सिद्धांत दिया था ।
- उन्हें एक सूचनाविद् के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने सूचनाओं को डिकोड करने के लिए भाषा का इस्तेमाल किया था ।
- पाणिनि के व्याकरण ग्रंथ को अष्टाध्यायी (या अष्टक) के रूप में जाना जाता है। इसकी रचना छठी या पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में की गई थी। संस्कृत भाषा के पीछे के विज्ञान को समझाने के लिए इस ग्रंथ में 4000 सूत्र हैं।
- यह एक ऐसी प्रणाली पर निर्भर करता है, जो किसी शब्द के आधार (मूल) और प्रत्यय ( suffix) को व्याकरणिक रूप से सही शब्दों एवं वाक्यों में बदलने के लिए एल्गोरिदम की तरह कार्य करती है।
- इसकी तुलना एलन एम ट्यूरिंग की ट्यूरिंग मशीन से की जाती है, क्योंकि शब्द बनाने के इसके नियम जटिल हैं।
- अष्टाध्यायी का बाद में कई सहायक ग्रंथों द्वारा संवर्धन किया गया था। ये सहायक ग्रंथ हैं- शिवसूत्र (ध्वनियों का विशेष क्रम); धातुपाठ (मूल शब्दों की सूची); गणपाठ (संज्ञाओं के अलग-अलग समूह) और लिंगानुशासन (लिंग निर्धारण की प्रणाली) आदि ।
स्रोत – द हिन्दू