18 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति अपनी मर्जी से धर्म चुनने के लिए स्वतंत्र: सुप्रीम कोर्ट
हाल ही में, एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति अपना धर्म चुनने के लिए स्वतंत्र है । सुप्रीम कोर्ट ने यह बयान काला जादू और जबरन धर्मांतरण नियंत्रित संबंधी एक याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए दिया।
याचिका करने वाले का तर्क:
- इस याचिका को वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर किया गया था। याचिका में कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन और इसके लिए काला जादू के इस्तेमाल को रोकने के लिए एक कानून की जरूरत है।
- इस तरह के धर्मांतरन के शिकार पीड़ित एवं गरीब तबके से आते हैं, जिनमे ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के लोग है ।यह खासकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखते हैं।
- याचिका में कहा गया कि इस तरह से अंधविश्वास का चलन, काला जादू और अवैध धर्मांतरण का मामला संविधान के अनुच्छेद- 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है।
न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी
- जस्टिस आर एफ नरीमन, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऋषिकेष रॉय की पीठ ने इस याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 18 साल से ज्यादा आयु वाले किसी भी व्यक्ति को उसका धर्म चुनने का अधिकार है। और देश का संविधान उन्हें ये अधिकार देता है।
- धार्मिक आस्था, निजता के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है। संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने ,आचरण और प्रचार प्रसार करने की स्वतंत्रता देता है।
- प्रत्येक नागरिक , अपनी पसंद के धर्म को चुनने तथा अपनी पसंद का जीवन-साथी चुनने के संबंध में अंतिम निर्णयकर्ता होता है। अदालत, धर्म या जीवन साथी के संबंध में किसी व्यक्ति की पसंद के फैसले पर अपना निर्णय नहीं दे सकती है।
- संविधान पीठ के फैसले में ‘निजता के अधिकार’ को ‘जीवन, गरिमा तथा स्वतंत्रता के अधिकार’ के समान बताया है , और कहा कि इससे उसके किसी तरह के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है ।
- अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस याचिका पर न्यायालय ने कहा की यह याचिका मात्र ‘पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ है ,यदि इसे वापस नहीं लिया गया तो इस पर जुर्माना लगाया जायेगा ।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस