12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का आयोजन
12 जून को प्रतिवर्ष विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मुख्य रूप से बच्चों के विकास पर केंद्रित किया जाता है। यह बच्चों के लिए शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित कराने तथा बच्चों के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार की रक्षा करता है।
इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए जागरूक करना है। इसके अलावा, बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा को मजबूत करना और बाल श्रम व अलग – अलग रूपों में बच्चों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघनों को ख़त्म करना है।
मुख्य बिंदु
इस दिवस को वर्ष 2002 में ‘इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (ILO)’ द्वारा शुरु किया गया था। ILOके अनुसार, विश्व भर में पाँच से सत्रह वर्ष की उम्र तक के कई बच्चे ऐसे काम में लगे हुए हैं, जो उन्हें सामान्य बचपन से वंचित करते हैं, जैसे कि पर्याप्त शिक्षा, उचित स्वास्थ्य देखभाल, अवकाश का समय, बुनियादी स्वतंत्रता इत्यादि।
इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (ILO)
- इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन (ILO) की स्थापना वर्ष 1919 में हुई थी।यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के रूप में कार्य करता है ।इसका मुख्यालय जेनेवा में है।
- इस संगठन का उद्देश्य विश्व में श्रम मानकों को स्थापित करना, और श्रमिकों की अवस्था और आवास में सुधार करना है।
बाल श्रम किसे कहते हैं ?
भारतीय संविधान के अनुसार किसी उद्योग, कारखाने या किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक श्रम करने वाले पाँच से चौदह वर्ष के बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है
बाल श्रम से उत्पन्न समस्या
बाल श्रम किसी देश के लिए एक सामाजिक और आर्थिक समस्या है। इसके चलते समाज में कई प्रकार की विकृति उत्पन्न हो जाती हैं।
- बच्चे शिक्षा से दूर हो जाते हैं।
- स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
- बच्चों से दुर्व्यवहार होता है।
- विस्थापन और असुरक्षित प्रवासन होता है।
- यौन शोषण हेतु ग़ैर क़ानूनी ख़रीद – फ़रोख़्त (चाइल्ड पोर्नग्राफी) होती है।
- भिक्षावृत्ति, मानवअंगों का कारोबार, बाल अपराध इत्यादि बढ़ते हैं।
- खेल कूद और मनोरंजन जैसी ज़रूरी गतिविधियां प्रभावित होती हैं।
भारत में बाल श्रमिक
2011 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार, भारत में पाँच से चौदह वर्ष के बच्चों की जनसंख्या लगभग 260 मिलियन है। इनमें से लगभग 4% बाल श्रमिक हैं, जो मुख्य या सीमांत श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं। वहीं पंद्रह से अठारह वर्ष की आयु के लगभग 23 मिलियन बच्चे विभिन्न श्रम कार्यों में लगे हुए हैं।
भारतीय संविधान में बाल श्रम हेतु किये गए उपबंध
- अनुच्छेद 15 (3): बच्चों के लिए अलग से क़ानून बनाने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 21: 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 23: बच्चों की ख़रीद और बिक्री पर रोक लगाता है।
- अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ख़तरनाक कामों में प्रतिबन्ध लगाता है।
- अनुच्छेद 39: बच्चों के स्वास्थ्य और उनके शारीरिक विकास के लिए ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने का आदेश देता है।
- अनुछेद 45: इस अनुच्छेद में 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की देखभाल और शिक्षा की ज़िम्मेदारी राज्यों की है।
- अनुच्छेद 51 A:माता-पिता पर बच्चों की शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करने का एक मौलिक कर्तव्य निर्धारित करता है।
बाल अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए किये गए राष्ट्रीय प्रयास
- कारखाना अधिनियम,1948 : यह 14 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों को कारखाने में काम करने से रोकता है।
- खदान अधिनियम, 1952: यह 18 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को खदानों में कार्य करने पर प्रतिबन्ध लगाता है।
- बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986: यह अधिनियम 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जीवन जोखिम में डालने वाले व्यवसायों में कार्य करने पर रोक लगाता है।
अन्य प्रमुख कानून
- किशोर न्याय देखभाल और संरक्षण अधिनियम, 2000
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
- निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
- लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012
- किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग
स्रोत – द हिन्दू